Page 24 - THE ZEENAT TIMES
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सोचा न था संघर्थ
सोचा न था, जीवन एक सिंघर्म ह,
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कोरोना जैसी भयानक बीमारी फलेगी इस तरह। सिंघर्म ही तो जीवन ह |
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सोचा न था, जीवन कमलयों की सज नहीिं,
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जजिंदगी बन्द होगीचार दीवारों म। उसम कााँटों का सिंगम ह |
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सिंघर्म करने की प्ररणा,
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सोचा न था,
दती हम प्रक ृ तत भी,
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चाह कर भी ममल न पाएिंगे, अपनों से।
तनत सूरज उगता व्योम म
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सोचा न था,
तनरतर चलती अवतन भी |
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जजिंदगी इस तरह सहम जायेगी।
य ऊचे, अटल खड़े पवमत
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सोचा न था,
कहते ह, मानव स
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स्वयिं स ज्यादा दूसर की होगी चचिंता।
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अडडग रह अपने तनणमय म,
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सोचा न था,
ना झुको ककसी क सम्मुख |
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लगेगा ईन्सान से ईन्सान को डर।
अववरल बहती नददयााँ
सोचा न था,
कहती क ु छ धीर- से,
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घर म हो जायेंगे कद इस कदर।
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तू बढ़ता जा आग ही,
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सोचा न था, ना रुको मागम म,
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न जाने कब इस कोरोना का कहर कम होगा, पा लो अपनी मिंजजल |
न जाने कब इस जजिंदगी को खोने का डर कम होगा। अवतन स तुम सहना सीखो,
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कर हम उन कममवीरो को प्रणाम, फ ू लो स, तुम खखलना
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जजनकी वजह से बच रहीिं ह जान। पवमत सा हो जाओ अडडग
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अम्बर सा ववस्तृत होना | तरुणा रानी
प्राथथना
प्रिक्ता (ह ंदी )
टी जी टी ( प्राकर्तथक विज्ञान)