Page 89 - Akaksha (8th edition)_Final pdf
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                                                     ं
                     णकताबें झाकती हैं बद अलमारी क े  शीशों से


                                                            ें
                                                       किताब झांिती हैं बंद अलमारी ि शीशों से
                                                                              े
                                                              बडी हसरत से तिती हैं
                                                                          ें
                                                           महीनों अब मुलािात नहीं होती
                                                       जो शामें उनिी सोहबत में िटा िरती थीं

                                                                                े
                                                      अब अकसर गुज़र जाती है िम्प्यूटर ि पददों पर
                                                                 े
                                                             बडी बचैन रहती हैं क़िताब  ें
                                                       उनहें अब नींद में चलन िी आदत हो गई है
                                                                       े
                                                                ें
                                                                                 े
                                                          जो िदर वो सुनाती थी कि कजनि
                                                                               े
                                                                            े
                                                            े
                                                                                   े
                                                       जो ररशत वो सुनाती थी वो सार उधर-उधर हैं
                                                     िोई सफा पलटता हूं तो इि कससिी कनिलती है
                                                                               े
                                                                     े
           गुलज़ार                                          िई लफ्ज़ों ि मानी कगर पड हैं
                                                                          े
                                                               े
                                                       कबना पत्ों ि सयूखे टुंड लगत हैं वो अल्फाज़
           जन्म :-18 अगस्त, 1934
                                                          कजन पर अब िोई मानी नहीं उगत  े
                                                    जबां पर जो ज़ा्िा आता था जो स्फा पलटने िा
                                                                      े
                                                     अब ऊ ं गली ककलि िरन से बस झपिी गुजरती है
                                                      किताबों से जो ज़ाती राबता था, वो िट ग्ा है
                                                                 े
                                                                           े
                                                                                े
                                                          िभी सीन पर रखिर लट जात थ  े
                                                                          े
                                                                           े
                                                               िभी गोदी में लत थ  े
                                                                     े
                                                      िभी घुटनों िो अपन ररहल िी सयूरत बनािर
                                                                             े
                                                                               े
                                                                       े
                                                                         े
                                                       नीम सजदे में पढा िरत थ, छयूत थ जबीं से
                                                       वो सारा इलम तो कमलता रहेगा आइंदा भी
                                                                               े
                                                                             े
                                                     मगर वो जो किताबों में कमला िरत थ सयूखे फ यू ल
                                                                      े
                                                                            े
                                                               और महि हुए रुकि
                                                                         े
                                                         ें
                                                                                     े
                                                                       े
                                                                                 े
                                                              े
                                                                              े
                                                                   े
                                                    किताब मंगान, कगरन उठान ि बहान ररशत बनत थ  े
                                                                उनिा क्ा होगा
                                                             वो शा्द अब नही होंगे!
                                                                                                 89
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