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आसमान अब तुम खुद पर इतराना छोडो,
गर कि सूरज अब ससर् तुम्हार घर ही नही मर घर भी उगता ह,
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ढ ूींढ सिया ह उसन एि नया आसियाना,
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जो िगता ह उसे पहिे से अधिि सुहाना।
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यह रोज उगता ह मेर घर-बार,
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तुम्हार घर उगता ह यह ददन म बस एि बार,
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पर मेर घर िी रसोई म उगता ह ददन म िई-िई बार,
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तुम्हार घर िाता ह यह ससर् प्रिाि,
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पर मर घर िाता ह यह खुसियों िा उजास,
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आसमान अब तुम खुद पर इतराना छोडो,
गर कि सूरज अब ससर् तुम्हार घर ही नही मर घर भी उगता ह।
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चूल्ह स उठती हई आींच िी हल्िी नारगी किरण ,
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जब मरी प्रप्रया ि माथे िी सुखफ िाि बबींदी पर पडती ह,
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पूर घर म अरुणोदय हो जाता ह,
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पसीन स प्रपघििर आडी ततरछी हई उसिी बबींदी जब माथे पर र्िती ह,
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सूरज ि रथ ि पदहये िा तनिान चारों ओर छा जाता ह,
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आसमान अब तुम खुद पर इतराना छोडो,
गर कि सूरज अब ससर् तुम्हार घर ही नही मर घर भी उगता ह।
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सूरज िो भी भान िगा ह यह नया आसमान,
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प्रप्रया ि ढीि जूडे म र् ू ि बनिर टि जान िा ह उसिा अरमान,
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तनश्चींत ह कि उसिा अब नहीीं होगा िभी अवसान,
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नये आसियाने िो पािर उसिा भी बढ गया ह मान,
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आसमान अब तुम खुद पर इतराना छोडो,
गर कि सूरज अब ससर् तुम्हार घर ही मर घर भी उगता ह।
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