Page 101 - केंद्रीय विद्यालय बड़ोपल ई- पत्रिका
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हास्यकनिका
धन्यर्ाद: नचनकत्साय
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आगिक: िरुर्: - ' सप्रषषतम्म वद्यिषन! षवतम्: दिदकत्सयष
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अहम उिकतम्: इदतम् वि अत्र आगतम्वषी अन्ति '
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( सप्रषषतम् डॉक्टि, म (अिीम ित्नम को) यह कहकि लषयष ह
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कम आि कम िवष स म र्हुतम् स्वस्थ िहष ह )
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वद्य: - "एव ? दकि अह किषदि षवतम्: दिदकत्सष ी कतम्वषी
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िल?"
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( अच्छष इस प्रकषि दकतम् मी तम्ो कषम आिकष इलषन दकयष
हम ीहमं ?)
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आगिक: िरुर्: - ' सत्य दकि मम श्वशिस्य दिदकत्सष षवतम्ष
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एव कतम्ष ,यि ह्य: ििलोक गतम्वषी
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( दर्लकल सहम दकतम् मि ससि कष इलषन अिी हम दकयष थष
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नो कल हम ििलोक दसिषि गए अथषतम् मत्य को प्रषप्त हो गए )
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मस्कषी, कक्षष – ीवमम , अीक्रमषक – 16
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