Page 54 - ANUBHUTI
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Shradhhanjali


                कविता  "कोरोना अंतर्मन से"
                बनकर कोरोना शैतान ,

                र्हार्ारी आंधी तूफान।
                ककतनों की ले ली है जान ,

                सोचा नहीं था ए इसान।
                               ं
                                                                                    ं
                धरती बन जाए शर्शान,                                    राहत दी जस ऊट र्ुंह जीरा,
                                                                       शासन सर्झ ितन की पीड़ा।
                हर्स क्यों रूठ भगिान।
                            े
                    े
                                                                       कहां छ ु प गए सब धनिान,
                ररपु चाइना अर्ेररका बान,
                                                                       संकटकाल र्ें कर कछ ु  दान।
                दोऊ  बन कसे नादान।
                       े
                         ै
                                                                       इसा तू बन जा इसान ,
                                                                         ं
                                                                                     ं
                इटली चाइना अर्ेररका रोए ,
                                                                       चक्षु र्ोल ले र्ोल ले कान।
                रोए सारा जहान।
                                                                       धन और धर्म नहीं पहचान ,
                कोरोना की आग र्ें भाई ,
                                                                       कोरोना नेचर की र्ान।
                जल रहा है हहंदुस्तान।                                  आपद काल र्ें जो नर नारी,
                बचना है तो धोय हाथ ,
                              े
                                                                       पुण्य प्रताप उनका है भारी।
                दूरी बनाक रहहए साथ।
                        े
                                                                       बचा रह ककतनों की जान,
                                                                              े
                गर्म पेय का कररए पान ,
                                                                       धन्य आप हो आप र्हान,
                भीड़भाड़ से बच इसान।
                              ं
                                                                       जीतगे हर् जंग जहान ,
                                                                           ें
                घर र्ें रह तो बचे की जान,
                        े
                                                                       मर्ट कोरोना नार् ननशान।
                                                                           े
                कफर करना पूरा अरर्ान।
                                                                       र्नीरार् की यही पुकार,
                लीलाधारी हो गए फल,
                                े
                                                                       र्ानि तू र्त र्ान ना हार।
                बंदी बन कर बैठ जेल।
                             े
                बंद पड़ी है सारी रल,                                   कवि  मनीराम टीजीटी ह िंदी ।
                              े
                प्रशासन भी हो रहा फल।                                  (सिाननिृत्त शिक्षक)
                                 े
                                                                          े
                दीन हीन का कर बयान,
                             ें
                भाग रहा लेकर अब जान।
                बाल िृद्ध सब नर औ नारी,
                अश्रु पोंछना पड रहा भारी ।
                                                                            Late Shri Mani Ram
                र्ूर्म बजा रहा है थारी ,

                दूर ना हो ऐसे बीर्ारी।                                             T G T Hindi
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