Page 4 - DEHRA PUBLIC INTERMEDIATE COLLEGE MONTHLY MAGAZINE AUGUST EDITION
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       माना बट की चाह रखन वाल लोग ज्यादा हैं,
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       पर बटी क े जन्म पर खश होन में कोई बराई नहीीं होती..
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                                                       े
                                े
       यह भी मान ललया लक बट घर का लचराग होत हैं,
                                          ाँ
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             ैं
                                              ाँ

       पर मन तो कहीीं नहीीं पढा, बलटया मा-बाप की परछाई नहीीं
       होती..
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       राम चन्द् सा बटा कौन नहीीं चाहता,
                                                                                  MISS DIMPLE SANAN
                                    े
       पर अगर सीता माता-सी बटी घर लौट कर आई नहीीं होती,

       तो दीवाली लकसी ने मनाई नहीीं होती,

                             ाँ
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       दीपक की कतार य सजाई नहीीं होती,
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                                   ाँ
       मा लक्ष्ी सबक घरोीं में य आई नहीीं होती...!


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       क्या दखा है तमन कभी ऐस लपता को,
                                       ाँ
                 े
       अपनी  बटी की लवदाई पर आख लजसकी भर आई नहीीं होती,

       अपनी फल-सी बच्ची को लवदा कर लपता की अपनी आत्मा
         ु
       मरझाई नहीीं होती....

                                       ीं
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       या लफर लमल हो कभी ऐसी मा से,
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       लजसन अपन लहस्स की लमठाई अपनी परी को खखलाई नहीीं होती,
                                                        ु
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       और खद क े कगन बच-बचकर अपनी बटी दल्हन सी सजाई नहीीं
       होती.....
               े
       अगर बटोीं से ही होती घर की रौनक,
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       भगवान ने बटी बनाई नहीीं होती,

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       अगर बटी इस दलनया में आई नहीीं होती,

       तो यह कलवता आज मैं ललख पाई नहीीं होती....!
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