Page 3 - Vigyan Ratnakar March 2021
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    वर्णरत्ाकर मे ववज्ानक सन्दभ्ण
अखिलेश झा
साल 2021 शताब्दी िष्ष अछि ज्ोवतरीश्वर ठाकु र द्ारा विरछचत िणर्ष त्ाकर पोिीक कलकत्ा विश्वविद्ालय के एम.ए. पाठ्यक्रम मे लगबाक। एवह पोिीक रचनाकाल चरौदहम शताब्दी के आरंभ मे मानल जाइत अछि। ई पोिी शब्दािलीक रूप मे छलखल गले िल। ओवह शब्द-पदसभक संग्ह जे समकालीन समाज के पररम्थिवतक पररचय दैत िैक। मछै िली भाषाक रिछसद्ध विद्ान आ मछै िलीक सं रक्क डॉ. सनु ीवतकुमारचट्ोपाध्यायकअनमु ानिछन्जेएवहपोिीक रचना ज्ोवतरीश्वरजी किािाचक सभक वदशावनदमेशक लले के ने िलाह। एवह तरहक पोिी बाँ ग्ा भाषा मे आरो भटे ैत अछि, जे िणर्ष त्ाकरक परितणी अछि। वमछिला आ बंगाल मे किािाचन समाजक एकटा महत्त्वपण् ्ष गवतविछि रहल अछि। एवह पोिीक माध्यम सँ ज्ोवतरीश्वर ठाकु र ओवह संदभक्ष शब्दािली संगहृ ीत कयलाह जे नायक-नावयका सँ लऽ कऽ सामान् खवे तहर-कामगारक पररचय देबाक लले आिश्यक गणु -िमक्ष िणन्ष मे आिश्यक होइत िै। नगर- ग्ामक जीिन सँ ल क राजदरबारक िणन्ष , खान-पान सँ लऽ कऽ श्मशान िररक िणन्ष आ कलाकार सँ लऽ कऽ ज्ोवतविद्ष आ िद्ै सभक िणन्ष भटे ैत अछि िणर्ष त्ाकर म।े विज्ान-रत्ाकर के रििेशांक मे अपने सब देखबै वकप्ि्षमध्यकालीनवमछिलामेविज्ानककेहनसंदभ्ष भेटैत िै। एकर स्ोत अछि िण्षरत्ाकर। पाठक लोकवन कें इहो जावन रिसन्नता हेतछन् जे एवह विज्ान-पवत्रकाक नामकरण सेहो िण्ष-रत्ाकर पोिी सँ रिेररत अछि। ज्ोवतरीश्वर ठाकुरक समय मे वमछिला मे बहत रास रत्ाकर ग्ंिक रचना भेल िल, जेना- स्ृवत-रत्ाकर, दान-रत्ाकर आवद। रत्ाकर समुद्रक पया्षयिाची शब्द अछि। तदनुरूप ज्ोवतरीश्वर अपन पोिीक अध्याय सभ के कल्ोल कहैत िछिन। कल्ोलक अि्ष होवत अछि लहर। िण्ष-रत्ाकर मे आठ कल्ोल रहै म्लतः। एवह पोिीक पांडुछलवप तवड़पत (तालपत्र िा ताड़पत्र) पर भेटल िल रॉयल एछशयावटक सोसाइटी ऑफ बंगाल के 1900 मे पंवडत हररिसाद शास्तीजीक नेतृत्व मे। शास्तीजीक सहायक पं वडत विनोदवबहारी काव्यतीि्ष के एकर पांडुछलवप भेटल िलैन वमछिलाक कोनो गाम सँ। रिाप्त तवड़पत मे सम््ण्ष पोिी नवह उपलब्ध िैक। जेउपलब्धिै,तहूमेबहतक्यभेलाककारणवकिु शब्द सब पढ़ऽ मे नवह अबैत िै। परंच, जतबे उपलब्ध अछि, तावह मे समकालीन वमछिलाक बारे मे जनबाक पया्षप्त सामग्ी भेटैत अछि। ओवह मे कतेको सन्दभ्ष ओहनो िैक जावह सँ तत्ालीन वमछिलाक िैज्ावनक
चेतनाक पररचय सेहो भेटैत अछि।
विज्ान समाज मे ओवहना अन्तवनव्ष हत होइत अछि, जने ा
कला-संस्ृवतअििाअिव्षिज्ानसहजरूपेंमानि-व्यिहार मे रहतै अछि। कोनो समाजक आिश्यकता, रिािवमकता
आ उपादेयता ओकर विज्ानक
दशा-वदशा वनिार्ष रत करतै
िैक। वमछिला मल् तः संतोषी समाजरहलअछि,कृवष-रििान
अित्ष ंत्र आ दशन्ष ोन्खु बरौवद्धक
तं त्र ओकर अन्तम विशषे ता रहल
अछि। अइ पष्ठृ भव् म मे िणर्ष त्ाकर मे ज्ोवतरीश्वर मछै िल सभक िज्ै ावनक चते नाक उल्खे करतै िछि। दोसर कल्ोलम-ेनायककिणन्षकरतैज्ोवतरीश्वरअश्वछशक्ा, गजछशक्ाक सं ग-सं ग ज्ोवतषशास्त, िद्ै क, आकरज्ान आरत्परीक्ाआवदकविशषेज्तासहेोआिश्यककहतै िछिन। अिात्ष ् समकालीन मछै िल समाज मे िम,्ष दशन्ष , यद्धु करौशल, राजनीवत आवदक सँगें िज्ै ावनक वििा सभक अध्ययन सहे ो रिचछलत िल।
तेसरे कल्ोल मे कोनो आर सन्दभ्ष मे ज्ोवतरीश्वर चारर रिकारक िैद्क उल्ेख करैत िछि- विषिैद्, नरिैद्, गजिैद् आ अश्विैद्। अिा्षत् मनुक्खक सामान् छचवकत्क त रहबे करै वमछिला मे, जानिरक लेल सेहो अलग-अलग विशेषज्ताक छचवकत्क रहै। हािीक छचवकत्क अलग आ घोड़ाक छचवकत्क अलग।विषिैद्कअलगसँउल्ेखसंकेतकरैतअछि जेविषतत्ालीनसमाजकलेलविशेषसमस्याक विषय िल। अष्टम कल्ोल मे ज्ोवतरीश्वर वमछिला मे रिचछलत छचवकत्ाग्ंि सभक नाम दैत िछिन् आ कोन तरहक भेषज (दिा) सभ देल जाइत िलै ओवह समय, तकर उल्ेख सेहो करैत िछिन्- रस, रसायन, तैल, घृत, मोदक, च्ण्ष, लेह, िटक, गुवटका, अंजन आवद।
आठमे कल्ोल मे समद्रु ी जहाजक िणन्ष के ने िछि ज्ोवतरीश्वर। ओ रिसंग मे वदशा आ कालक गणनाक विशषे ज्क नाम सहे ो िछणत्ष करतै िछि, जे सदु ीघ्ष समद्रु ी यात्राक लले आिश्यक िल- ताराविद,् गणक, ित्े ायन आवद। समद्रु ी जहाजयात्राक पररचालनक लले विशषे ज् आजीविकाक अिसर सँ वमछिला मे जानकारी तँ रहबे कर,ै
रत्नाकर समद्रु क पययायवनाची शब्द अछि। तदनरूु प ज्टोवतरीश्वर अपन पटोथीक अध्नाय सर के कल्टोल कहतै िछथन। कल्टोलक अथ्ण हटोवत अछि लहर। वर-्ण रत्नाकर मे आठ कल्टोल रहै मलू तः।
सहे ो
मे व्यापार,
व्यापाररक िस्,ु व्यापारीसमदुायआ व्यापाररक संबंि केर विषय मे जतके विस्ार सँ िणन्ष भटे ैत अछि, तावह सँ ओवह वमिकक खंडन होइत अछि जे वमछिलाक लोक सभ वमछिले मे संकुछचत िलाह सभ वदन सँ आ बाहरी दवु नया सँ हनका सभ कँे
कमसम्क्षरहनै।
वमछिला ज्ोवतषविद्ाक रिछसद्ध केन्द्र त, रहले
अछि, सामान् जनजीिन मे सेहो ग्हावदक चेतना नीक स्र पर रहैक। ज्ोवतरीश्वर चन्द्रमाक सोलह कलाक िण्षन करैत िछि- हरिल्भा, मनोहरा, रिभािती, मोवहनी, मोवहता, नाछलता (लछलता), उन्नता, भद्रा, भद्रतरा, हररणी, हमसमाछलनी, तरंवगनी, नन्दा, सुनन्दा, रिवतमा आ गजदन्ता। तत्ालीन समाजक बहत रास गवतविछि चन्द्रमाक म्थिवत सँ पररचाछलत िलैक। ई विज्ानक रियोग मे लाछलत्य क सुन्दर उदाहरण के रूप मे देखल जयबाक चाही।
विज्ानक सं गवठत स्रूपक रिमाण सेहो िण्षरत्ाकर मेभेटैतअछि।चतुि्षकल्ोलमेचरौसंठकलाकिण्षन के र क्रम मे ज्ोवतरीश्वर अनेक रिकारक विद्ा के र िण्षन करैत िछि, जावह मे िास्ुविद्ा, रत्परीक्ा, िातुिाद, मछणराग, अररज्ान, िृक्ायुर्वमेद आवद विद्ा सभक िण्षन भेटैत िैक।
ज्ोवतरीश्वर वमछिला मे रिचछलत ज्ोवतषविद्ाक ग्ं ि सभक स्ची सेहो दैत िछिन्, जावह मे श्ीपवतसंवहता, नन्दसंवहता, देिलसंवहता, चन्द्रसंवहता आवद उल्ेखनीय अछि। ज्ोवतष मे स्क्ष्म सँ स्क्ष्मतर गणनाक महत्त्व होइत िैक। आइ जेना सेकं डक हजारम, लाखम स्र पर समयक गणना होइत िैक, तवहना वमछिला मे दण्ड-पल-कला-विकला आवद स्र पर स्क्ष्म गणना होइत िलैक आ लेहो वबना कोनो मशीन आ कम्प्टरक मदद सँ । ज्ोवतरीश्वर िण्षरत्ाकर मे एकरो उल्ेख करैत िछि चतुि्ष कल्ोल मे।
एही तरहें िण्षरत्ाकर मे जइ तरहें पि्षतक रिकारक िण्षनभेटैतिैअििािनकिण्षनकक्रममेपश-ुपक्ी सँ लऽ, कऽ गािपातक जतेक विस्ार सँ िण्षन भैटैत िैक, ताहू सँ समकालीन वमछिलाक िैज्ावनक चेतनाक आ पाररम्थिवतकीक चेतनाक पररचय हमरा लोकवन कें भेटैत अछि।
ई एक टा िोट रियास अछि िणर्ष त्ाकर मे विज्ान आ िज्ै ावनक दृवष्टकोणक पड़ताल करबाक। िणर्ष त्ाकर मे एवह सन्दभ्ष मे आर विस्तृ आ गं भीर अध्ययनक सं भािना तँ िइह,े ओकर आिश्यकता सहे ो िैक। पि् म्ष ध्यकालीन
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 विशषे ज्ता िणर्ष त्ाकर व्यापार-माग,्ष
रह।ै
  





































































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