Page 80 - कबिता संग्रह.docx
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गर बी संग ल न नसके र
मृ यु ि वकान बा य छन ् ।
शहर कनारका फोहोरका थु ाह मा
खाल पेट र ना गो श ररको
यु द च छ
आ नो अि त व बचाउन
हरदम संघष मा
अबोध
बेकसुर गर बह !
वेवा रसे ब चाह !
ए ! भगवान दया गर
उ नह पनी त ै स तान हन ्
ु
गर ब र धनी बचमा
कन यती ठ ु लो भ नता ?
गर ब ह का पनी मन ह छन ्
ु
गर ब ह का पनी पेट ह छन ्
ु
रहर ह छन ् अनी सपना ह छन ्
ु
ु
मानवता हराएको मेरो देशका
शासकह लाई
संझाई देऊ
ती बेकसुर ग रबह लाई
गास बास कपासको याव था होस !
गास बास कपासको याव था होस !
बाबुराम प थी "गु मेल "
त घास गु मी