Page 73 - कबिता संग्रह.docx
        P. 73
     ख बृ  र लताह
               चरा चु  गी र जनावरह
               ढँ◌ुगा , माटो,
               सिजव  निज व
               सबैले बुझेका छन ्
               उनीह  क हले
                क ृ ती  व  ध उ ेनन ्  !
               मा छे , मा छेले  क ृ ती बद न खो यो
                क ृ ती बु न सके न
               आफ ू लाई  ववेक शल  ाणी ठा दा
               मा छेकै  कारण
               अ याय , अ याचार ,अपराध
               र यु दले
                व त हनेछ संसार
                       ु
               मा छेकै   ववेक शल स चले
               मा छे  क ृ ती बद न खो यो
               तर
               आफ ू   भ  रहेको अहंकार बद न चाहेन
               अ लाई रा ो ब न  सकाउन खो यो
               आफ ू ले रा ो ब न  सके न
               आ नो मनको  त  इ  या पुरागन  चा यो
               बु धी र  ववेक गलत  पमा  योग गरो
                यसैले
               आज यो संसारमा
               मानवता हराएर दानवता हावी छ ।
                बधाता पनी दु:खी र प चा ापमा होलान
                वधाताको सृि ट प रवत न गन  दु शाहस गन
                ाणी  कन बनाँए भनेर
                                            बाबुराम प थी "गु मेल  "
                                               त घास गु मी
               नयाँ  नेपाल  दे े  छौ
               -----------------------
               ए  !  वग वासी   म
                तमी  ध य  रहे  छौ
               वाह  !  वग मा  बास  छ  ।
                याँहा  प कै   पनी  आनि दत  छौ  होला
                  गारले  सिजएको   यो   वग   !
                त   झल   मल  रंगी  वरंगी  व ीह   को  रौनक
                त  सु दर  बगैचामा  फ ू लेका  सुगि धत  फ ू लह
               न  राग  , वेश  नत   य वचार
               यता  उता  जता  हेय   उतै  खु शयाल
               चारै   तर  उमंग  भ रएका  सु दर  आ माह
                वग मा  पर ह को  नृ य  आकष क  होला





