Page 5 - CHETNA January 2019 - March 2019FINAL_Neat FLIP
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एक हवा का झोंका सा आये और चलती हई कहानी का सारा मजमून ही
ु
बदल जाये. यही हाल अचानक से चेतना के साथ भी हआ. अपने मकसद पर
ु
पहिंचती हई चेतना की र्तत सहसा ही थम र्ई. चेतना के सम्पादक शरोवन जी
ु
ु
की स्पाइन की सजचरी क्या हई कक लर्ा जैसे चेतना की तो टाँर्े ही ट ू ट र्ईं. पूरे
ु
नौ माह तक चेतना का काम बिंद रहा. सोचा तो यही लर्ा कक शैतान अपना
काम कर र्या है. इसको चलानेवाला, सिंभालनेवाला, इसका सम्पादन करने वाला
कोई दूसरा क्यों नहीिं तैयार हो सका? एक तरि शरोवन जी की गर्रती हई
ु
सेहत और दूसरी तरि अपने मकसद से िरार होती हई चेतना ..., मेरे पास
ु
दुआ के अलावा कोई दूसरा चारा भी नहीिं था. बस दुआ करती रही, उम्मीदें
लर्ाये रही, ववश्वास बनाये रही कक अर्र परमेश्वर यह सचमुच में तेरा ही कायच
है तो मुझे सिंघषों से पीछे नहीिं हटने देना. किर सचमुच में खुदा ने मेरी दुआ
सुनी, परमेश्वर ने सब लोर्ों की दुआओिं का उत्तर हदया, सजचरी सिल हई, वे
ु
धीमें-धीमें ठीक हो रहे हैं और जब एक हदन वे किर से महीनों से वीरान और
सूनसान पड़े अपने कायाचलय में बैठे तो आँखों से स्वत: ही आिंसू मोततयों की
श्रिंखला बनकर ट ू टने लर्े.
किर एक हदन मुझे आदेश सा हआ. शरोवन जी ने मुझसे कहा कक, 'इस
ु
बार की अधूरी पड़ी चेतना के शलए 'चेतन्यधारा' तुम्हें शलखना है. मैं अचानक ही
चोंक र्ई. खड़े से गर्र पड़ी. प्रबिंध करना बहत आसान काम है. कभी-कभी
ु
शलखना भी मुजश्कल काम है, लेककन सम्पादकीय शलखना...? मैं डर र्ई. मैंने
शशकायत की और कहा कक, 'इतना सब क ु छ करती हँ. घर भी देखूिं, सारा
ू
हहसाब-ककताब भी देखूिं, आपकी रचनाओिं में सिंशोधन भी करिं , चेतना की प्रूि
रीडडिंर् भी करिं , इमेल आहद की डाक भी सिंभालूिं, आपके कायाचलय, ककताबों आहद
को भी साफ़ रखूिं, नहीिं जी..., मुझसे नहीिं शलखा जाएर्ा ये महत्वपूिच कालम.
आपका तो वह हाल हो र्या है कक जैसे कहीिं घी मुफ्त में शमलने लर्ा है तो
उसे अिंर्ोछे में ही बाँध कर ले जाओर्े.' मेरे इस कथन पर हमेशा से र्म्भीर
रहने वाले चेहरे पर मुस्कान आई तो मुझे लर्ा कक मैंने सचमुच र्लत नहीिं
कहा है.
5 | चेतना जनवरी 2019 - माचच 2019