Page 2 - Pratibimba 34 final_Neat1
P. 2

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                                                                                                                 ं
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                                                                                                       - ितिब
                                                                                                                 ं
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                                                                                                                 ब
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      द  ण पि चम रलवे                                       2                                        ई- ितिबब
                                                                                                     ई ई
        ह बि ल मंडल
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                                                   राजभाषा  ह  द
                तावना-     14  सतंबर का यह पावन  दवस स पण भारत वष म  बड़ े ह  हष  लास एवं गव   से

                                                              ू
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                          ै
           मनाया जा रहा ह। य ज न ह, भाषा का यह ज  न ह,  ह  द  का,यह ज  न ह उस बोल  का, िजसम
                                    ै
                                                        ै
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                                                                                           ै
           हमने पहल  बार म  कराना सीखा। मां क   त अपने एहसास को श  द दना सीखा। यह ज  न ह उस
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                    ं
           परानी परपरा का जो जय शंकर  साद, महादव वमा , संत कबीर दास, संत तलसीदास स आती ह,
                                                                                       े
                                                                             ु
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           िजस हम गव स माता  ह द /भारती कहत ह ।
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                हमार  सं वधान सभा ने  ह द  को भारतीय गणरा य क  अ धका रक भाषा क  प म  14
                                                                                     े
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                                                                                              े
            सतंबर 1949 को अपनाया, िजसस हम 14  सत बर का  दन बड़ ह  धम-धाम स  ह  द   दवस क
                                                                        ू
            प म  मनात े ह । हमार  भाषा  ह द  को हमारे सं वधान के  अन छेद 343 म  भारतीय संघ क  राजभाषा एवं अन  छेद
                                                                                                          ु
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           348 एवं 349 म   मश: उ  च   यायलय एवं सव   च   यायलय क  भाषा के   प म  मा  यता  ा  त है।
                                                                                  े
                                                                              ं
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              हमार  भाषा  ह  द  आ दकाल स ह  अपने स  पण  भ व क साथ अनवरत ढग स हमार स य समाज म   नमल   गंगा
                                                           ु
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           क  तरह  वा हत होती चल  आ रह  ह। यह तो हमार   वतं ता सं ाम सना नय  क  भाषा भी रह  ह, जस राम साद
                                                                                                    ै
                                                                                                 ै
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                                                                   े
            बि मल जी कछ इस तरह  ह  द  क   त अपने  म को  कट करत ह -
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                       ु
              लगा रह  म  ह  द  म , पढ़   ह  द ,  लख   ह  द  म ,
                       े
                     े
              चलन  ह  द , चल म     ह  द , पहनना, ओढ़ना, खाना हो  ह द  म ।
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                               ु
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                                                      ै
            ह  द  का माधय- हमार   ह  द  इतनी मधर ह  क यह पाठक,    ोत एवं लखक क मन एवं  दय म   म ी क  भां त
                                                   ु
                                              ै
            मठास को घोल दती ह यह इतनी मधर ह  क, अपने  ठो तक को मना लती ह या   रत करती ह-   ै
                                                                        े
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               ठ सजन मनाइए, जो  ठ सौ बार।
                   ु
              र हमन  फर,  फर पाइए टट म  ता हार।।
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                                     े ू
              हमार   ह  द  भाषा अ  य  त ह  सरल एवं सहज ह यह हमार साध, स  तो, महाप ष  क  भाषा ह। अत: इसम  सरलता
                                                       ै
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                                                                    ु
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                           े
           एवं सहजता सय क  काश क  भां त स  पण जगत अपनी क  त  लए हए फल  ह। स  त  क वचन शीतल जलमय ह जो
                                                                                       े
                                                                          ै
                                                                               ै
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           अमत क  धारा बरसात ह ।
               ृ
                                          ै
                क टल वचन सबस बरा, जा र कर सब दार।
                              े ु
                ु
              साध वचन जल  प ह, बरस अमत धार ।।
                                ै
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                                                ै
              हमार   ह  द  भाषा साध-संत  क  भाषा ह।
                                  ु
                               ै
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           संत कबीर कहत ह-
                ऐसी वाणी बो लए, मन का आपा खोए।
                               ै
                                     ं
                औरन को शीतल कर, आपह शीतल होय।।
                                     ु
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           भाषा क मा  यम स ऐसा उपदश  ह  द  भाषा क अ त र  त शायद ह  अ  य  कह ं  मल सकता ह। जो  क  ह  द  भाषा बड़
                                                  े
                                                     ं
                                                           ै
           ह  सरल एवं सहज ढग स आम जनमानस तक पहचाती ह।
                            ं
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                                                     ू

              यापकता- हम अपनी  ह  द  भाषा क    यापकता को इस तक स समझ सकत ह   क जब   वामी  ववेकानंद जी ने
                                                                                 े
                                                                     े
            शकागो म   व  व धम   स  मेलन म   ह  द  म  अपना भाषण    तत  कया था तब स  पण   सभा ता लय  क  गडगडाहट से
                                                                                   ू
                                                                 ु
           गंजायमान हो गयी थी और आज चाह  व  व   वा    य संगठन हो या अ  य अ  तरा     य सं  थाएं, भारतीय सं  क त एवं
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            ह  द  भाषा क  वीण अपना भाषण  ह  द  म  दत ह  और स  पण  व  व   यानम न होकर सनत ह । नम  त ! जस श  द
                                                                                        ु
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           िजनक  जननी भारत ह, अमर का क रा   प त एवं अ  य  वदशी महानभाव   वारा  योग  कय जात ह ।
                                                                                         े
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           राजनी तक चेतना एवं संवाद क  भाषा
                                                                                                   ै
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                                                                                                    े
              जब जब भी कोई शासक  वलासी हआ ह और उसका   यान  जा  हत स भटका ह तब तब  बहर  जस राजक व ने
                                                 ै
                                                                                   ै
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            ह  द  भाषा क मा  यम स ह  संवाद   था पत कर राजनी तक चेतना का  जा म   सार  कया ह। राजा जय  सह क अपनी
                                                                                                     ं
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           नव वध क  म म  ल न होने पर एवं  जा क  ओर   यान न दने पर,  जा क  हत  क  ओर   यान आक  ठ करने क  लए
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                                                                                                ृ
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           कहत ह- ै
              न ह पराग न ह मधर मध, न ह  वकास य ह काल।
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              अल  कल  म  ह   व ं  य  , आगे कौन हवाल।।
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