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राजभाषा ह द
तावना- 14 सतंबर का यह पावन दवस स पण भारत वष म बड़ े ह हष लास एवं गव से
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मनाया जा रहा ह। य ज न ह, भाषा का यह ज न ह, ह द का,यह ज न ह उस बोल का, िजसम
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हमने पहल बार म कराना सीखा। मां क त अपने एहसास को श द दना सीखा। यह ज न ह उस
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परानी परपरा का जो जय शंकर साद, महादव वमा , संत कबीर दास, संत तलसीदास स आती ह,
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िजस हम गव स माता ह द /भारती कहत ह ।
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हमार सं वधान सभा ने ह द को भारतीय गणरा य क अ धका रक भाषा क प म 14
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सतंबर 1949 को अपनाया, िजसस हम 14 सत बर का दन बड़ ह धम-धाम स ह द दवस क
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प म मनात े ह । हमार भाषा ह द को हमारे सं वधान के अन छेद 343 म भारतीय संघ क राजभाषा एवं अन छेद
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348 एवं 349 म मश: उ च यायलय एवं सव च यायलय क भाषा के प म मा यता ा त है।
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हमार भाषा ह द आ दकाल स ह अपने स पण भ व क साथ अनवरत ढग स हमार स य समाज म नमल गंगा
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क तरह वा हत होती चल आ रह ह। यह तो हमार वतं ता सं ाम सना नय क भाषा भी रह ह, जस राम साद
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बि मल जी कछ इस तरह ह द क त अपने म को कट करत ह -
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लगा रह म ह द म , पढ़ ह द , लख ह द म ,
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चलन ह द , चल म ह द , पहनना, ओढ़ना, खाना हो ह द म ।
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ह द का माधय- हमार ह द इतनी मधर ह क यह पाठक, ोत एवं लखक क मन एवं दय म म ी क भां त
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मठास को घोल दती ह यह इतनी मधर ह क, अपने ठो तक को मना लती ह या रत करती ह- ै
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ठ सजन मनाइए, जो ठ सौ बार।
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र हमन फर, फर पाइए टट म ता हार।।
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हमार ह द भाषा अ य त ह सरल एवं सहज ह यह हमार साध, स तो, महाप ष क भाषा ह। अत: इसम सरलता
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एवं सहजता सय क काश क भां त स पण जगत अपनी क त लए हए फल ह। स त क वचन शीतल जलमय ह जो
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अमत क धारा बरसात ह ।
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क टल वचन सबस बरा, जा र कर सब दार।
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साध वचन जल प ह, बरस अमत धार ।।
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हमार ह द भाषा साध-संत क भाषा ह।
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संत कबीर कहत ह-
ऐसी वाणी बो लए, मन का आपा खोए।
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औरन को शीतल कर, आपह शीतल होय।।
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भाषा क मा यम स ऐसा उपदश ह द भाषा क अ त र त शायद ह अ य कह ं मल सकता ह। जो क ह द भाषा बड़
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ह सरल एवं सहज ढग स आम जनमानस तक पहचाती ह।
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यापकता- हम अपनी ह द भाषा क यापकता को इस तक स समझ सकत ह क जब वामी ववेकानंद जी ने
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शकागो म व व धम स मेलन म ह द म अपना भाषण तत कया था तब स पण सभा ता लय क गडगडाहट से
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गंजायमान हो गयी थी और आज चाह व व वा य संगठन हो या अ य अ तरा य सं थाएं, भारतीय सं क त एवं
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ह द भाषा क वीण अपना भाषण ह द म दत ह और स पण व व यानम न होकर सनत ह । नम त ! जस श द
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िजनक जननी भारत ह, अमर का क रा प त एवं अ य वदशी महानभाव वारा योग कय जात ह ।
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राजनी तक चेतना एवं संवाद क भाषा
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जब जब भी कोई शासक वलासी हआ ह और उसका यान जा हत स भटका ह तब तब बहर जस राजक व ने
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ह द भाषा क मा यम स ह संवाद था पत कर राजनी तक चेतना का जा म सार कया ह। राजा जय सह क अपनी
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नव वध क म म ल न होने पर एवं जा क ओर यान न दने पर, जा क हत क ओर यान आक ठ करने क लए
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कहत ह- ै
न ह पराग न ह मधर मध, न ह वकास य ह काल।
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अल कल म ह व ं य , आगे कौन हवाल।।