Page 170 - Udaan Trial Book
P. 170
भ व य को प
अ ता स ह 9 B
अर म तुमन तो स कर दया क तुम ही मेर स म हो। म न कहा, मेर बड़ भाई क म तो बाहर रहत थ, े
े
े
े
े
े
े
े
े
े
ु
े
े
े
े
पर मेरी म मेर कमर म ही रहती थी। मेर आईन म वह ब कल मेर जैसी थी जब म नाचती ,वह भी नाचती जब म
े
े
े
े
े
े
हंसती वह भी हंसती और जब म सोन जाती वह भी मेर कमर क तरह दखन वाल अपन कमर म सो जाती।
े
े
े
े
े
े
े
े
े
पहल तो म ब त खी रहती , पताजी क जान क बाद दाद मुझ घर स बाहर जान नह दती। कहती थी क
े
े
लड़ कया बाहर नह जाती। म रोज अपन बड़ भाई को अपन जंगल स दखती जब वह खेलन और पढ़न जाता।
े
े
े
े
ं
े
े
े
ं
े
ु
मुझ भी यही करना था, पर दाद हमेशा मना कर दती। मा भी उ ह कछ नह बोलती, जब म 6 वष क ई तब मा ं
े
े
े
ँ
े
न मुझ एक आईना दया मेर हाथ म। वहा आईना थमा दया, जसम मुझ अपनी म मली। म उसस हमेशा
े
े
े
ं
े
े
कहती थी क वह आईन क बाहर आ जाए पर वह नह आती| मा न कहा था क आईना दाद को कभी ना
े
े
े
े
दखाई द। एक दन जब म अपन म स बात कर रही थी तब दाद अचानक कमर म आ गई और उ ह न वह
े
ं
े
आईना दखा तो उ ह न दखा म उस आईन स बात कर रही ,जो दाद को ब कल भी अ ा नह लगा और दाद
े
े
ु
े
े
े
न गु स म आकर वह आईना तोड़ दया | उस दन म न पहली बार दाद क खलाफ आवाज उठाई उ ह न यह भी
े
े
े
े
े
े
े
कहा क वह घर म अकल रह कर उस आईन स अगर बात करती , तो
े
ं
ै
इसस दाद को य असु वधा हो रही ह और मा न दाद स कहा क मेर भाई और मुझम कोई अंतर नह ह ब त
ै
े
े
ँ
े
े
सारी बात कहत ए उस दन दाद क आंख खुल गई ब त दर तक दोन झगड़त रह पर आ खर दाद चुप हो ग |
े
े
े
े
ु
े
े
अगल दन स मुझ भी बाहर जान क आजाद मल गई और आईन क अंदर जो लड़क मेरी म छपी ई थी वह
े
े
े
े
भी मेर साथ खुल आसमान क नीच मेर साथ खेलन लगी | आज भी म अपनी उस पुरानी म को उसक अंदर
े
े
े
े
े
े
े
क म को याद करती । ं