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ं
                   विध्वस की ओर                                                          जीत



                                                                                                     ु

                                                                                                ुं
                                                                                        ुुं
                                                                           हार क े समदर में ढढो तम जीत
                           े
                                        ध
      मानि का क्या था ध्यय, क्या अवजत करना चाहता था
                                                                          े
                                                                                      ु
      ,                                                                 महनत क े सरो से रचो एक नया गीत
                                                                                                        ुं
                                                                                 े
      वििकहीन ह  हर सीमा क , किल लाघना चाहता था                            अपन आप को कम ना आकना
          े
                                     े
                                             ं
                                                                                          ण

                                                                                   ुं
      I                                                                       स्वय में पर् तिश्वास रखना
                                                                                               ुं
                                                                                ु
                                                                       अपनी मश्किलोुं को हसकर करना पार
                                                                                                      ुं
                        ें
      जान वकस मद म मानि, दानि ह ना चाहता था,                            सफलता की शहनाई से गज उठाना
           े
                                                                                           ुं
                              ु
       मािा, सीमा का ि र् िला, िस ऐद्धिक सख ही                                           ससार
                                                 ु
      चाहता था I
                                                                                     ुं
                                                                                स्वय से करो एक िादा
                                       ु
      ममता क पाल पि कर, हर िस्त, व्यद्धि का श षण                         अपन स्वप्ोुं को बीच में नहीुं छोडोग   े
                     े
               े
                                                                               े
      करता था, पविम परुष न कि प्रकवत क , चतनता क                                         आधा
                                                           े
                                                   े
                                         ृ
                                े
                          ु
                े
      तल पर दखा था  I
                                                                                                   ु
                                                                          यतद तकदीर छोड दे तम्हारा हाथ
                                                                                ु
                                                                      तब भी तम मत छोडना पररश्रम का साथ
              े
      मानि न र्रती क  रौंदा, जल क  जीिनहीन वकया ,
                                                                                ु
                                                                       अपनी मश्किलोुं को हसकर करना पार
                                     े
      िाय क  दवषत कर, आकाश क मौन क  िग वकया I
                ू
                                                  ं
          ु
                                                                                                      ुं
                                                                        सफलता की शहनाई से गज उठाना
                                                                                           ुं
                                                                                         ससार
               े
      विध्वस क माग पर अग्रसर रहा ,
                     ध
           ं
          ध             ें  ं
      िचस्व की ह ि म सलग्न रहा I
                                                                                    तिशा खारी
             ु
        ं
      हा, िसर्ा प्रत्यत्तर कहा दती ह ,                                                   X-A
                     ु
                                     ै
                                े
                              ं
                     ें
                   ू
      पर हम न िल की यह विष्ण की चहती ह I
                                                ै
                                           े
                                   ु
      सौस्मी
      10 अ
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