Page 29 - E-magazine_October-2021
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TEACHER’S CORNER
जबखरना !!!! िब बद रहती ह एक लब अतराल तक....
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कहत ह मत जबखरना, मत ििना , मत चिकना एक बद कद , खलती ह िब सीपी
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लजकन!! .... तब लता ह एक सच्चा मोती िन्म ...
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तम जबखरो , तम चिको, तम फलो ... िब झडत ह पत्त पतझड म, नई कोपल त्मखलती ह ैं
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जबखर िाओ -जबखरना अछॎछा ह ...... नए बदलत मौसम म, नए पिी अपना घर करत े
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जबखर िाओ उस श्वत प्रकाश पि की भाजत
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एक का जगरना , द ू ि का पनपना ह|
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िो सफ़द होत हुए भी जबखरकर दता ह
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असफलता,सफलता की तयारी ह.. तो चलो ...
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एक सतरगी इन्द्धनष ससार को ,आनद क जलए.
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इसजलए जबखरो, फलो ,जगरो ,चिको ,हो िाओ
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फि िाओ उस बीि की तरह िो अकररत होकर दफ़न
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दता ह एक नए पौध को िन्म .......... ऐस जक जिसस हो कवल , कवल
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फि िान दो मन क द्वष को, फोड स जनकल े नवसिन..नवसिन....
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मवाद की तरह बहा दो.....
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दखा !! जबखरना ,फिना अछॎछा ह |
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फलो, जवस्तार करो उन्मक्त मन स नए जवचारोां का
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जिनस हो जनत नए जवकास क साधनोां का सचार
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बढ़ तम्हार – मर बीच का प्यार, जवश्वास अपार |
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चिक िाओ ..... चिकता ह िब आइना
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दता ह अपन अदर स, अनजगनत िकडोां को कई
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नए आकार
ण
अचला शमा
िब लगता ह हमार जकसी सकल्प को धक्का एक
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जहदी जवभाग
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सच मानो तब लगती ह ठस, और लती ह िन्म
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एक मन: शत्मक्त िन्म ......कछ कर गज़रन की
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