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सैनिक दोस्त (दोस्ती )


        दो बचपि क े दोस्तों का सपिा बड़ होकर सिा में भती होकर दश की सवा करिा था| दोिों िे अपिा
                                                        े
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        यह सपिा पूरा ककया और सिा में भती हो गए |
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        बहत जल्द उन्हें दश-सवा का अवसर भी प्राप्त हो गया| जंग निड़ गई और उन्हें जंग में भज ददया
                                                                               े
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        गया| वहााँ जाकर दोिों िे बहादुरी से दुश्मिों का सामिा ककया  |  जंग क े दौराि एक दोस्त बुरी तरह
        घायल हो गया|जब दूसर दोस्त को यह बात पता चली, तो वह अपि घायल दोस्त को बचाि भागा  |
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                                                                              े
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        तब उसक कप्टि िे उस रोकत हए कहा, “अब वहााँ जाि का कोई मतलब िहीं, तुम जब तक वहााँ पहचोग, तुम्हारा दोस्त मर चुका होगा |”
                 ै
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        लककि वह िहीं मािा और अपि घायल दोस्त को लेि चला गया|जब वह वापस आया, तो उसक कध पर उसका दोस्त था|लककि वह मर
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                                                                                                        े
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        चुका था  | यह दख कप्टि बोला, “मैंि तुमस कहा था कक वहााँ जाि का कोई मतलब िहीं  | तुम अपि दोस्त को सही-सलामत िहीं ला
                                      े
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        पाए|तुम्हारा जािा बकार रहा |
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        सैनिक िे उत्तर ददया, “िहीं सर, मरा वहााँ उस लि जािा बकार िहीं रहा| जब मैं उसक पास पहचा, तो मरी आाँखों में दख, मुस्क ु रात हए उसि  े
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                                                                        े
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                                                                               ु
        कहा था – दोस्त मुझ यकीि था, तुम ज़रूर आओग  |  यह उसक अंनतम शब्द थे  | मैं उस बचा तो िहीं पाया  लेककि उसका मुझ पर और मेरी
                                                        े
                                                                            े
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        दोस्ती पर जो यकीि था, उस बचा ललया |”
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                                                                          तिवी प्रमोद श्रीयाि
                  े
        सीख – सच्च दोस्त अंनतम समय तक अपि दोस्त का साथ िहीं िोड़त|         सातवीं ई
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                                         े
                                                                               े
                                                                                                      ै
                                                               ाँ
                                                             हा ! बहिा मोबाइल ि हम सबकी ि ु ट्टी कर दी ह
                  ें
                                                     ै
       ककताब बात करिा चाहती ह......
                                                             पहल जो हर वक़्त थे पढ़, हम को सीि स लगात
                                                                                             े
                                                                 े
                                                                                                े
                                                                                                     े
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       रात क अाँधर में, मैंि सुिी क ु ि अजीब – अजीब सी आवाज़    अब तो भूल स भी, िही झाड़त धूल
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                                                                       े
                                                                                      े
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                                                                         े
       डर गया मि, हो गया हराि !! कौि कर रहा ह यह गुि-गुि     ककताबों का पढिा,जस गए हों भूल|
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                                                                             ै
                                                                               े
       चलो लत हैं हम सुि, लगाकर अपि काि .....                अचािक खुली िीद – सच कसा आ गया जमािा !
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                                                                           ं
                                                                                    ै
                                                  ै
       पता चला आवाज़ ककताबों की अलमारी स आ रही ह              पीि रह गया अब BOOK READING करिा|
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                                                                े
                          े
       कशमकश और पीड़ा स , मािो वो चचल्ला रही हैं|

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                              े
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       पहली ककताब बोली – ककति प्यार स मुझ थ घर लाए
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       अब तो यदा-कदा ही कोई मुझको हाथ ह लगाए ..
                            े
       ‘ मोबाइल ऑिलाइि ’ ि तो हमको कर ददया ह कद
                                                 ै
                                               ै
                                                               अंककता घोष,
          द
       दद क हमार कोई िहीं रह गया वैद्य|
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                                                               कक्षा - सातवीं बी
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       दूसरी ककताब ि भी अपिा दुखड़ा सुिाया
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