Page 13 - 04-RISE-April-2021
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मक्खी का लालच



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                                                                                                                 े
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     एक शहद का व्यापारी था| जो जगह – जगह जाकर शहद बचता था| एक ददि एक ग्राहक को शहद बचत हए, शहद का बतदि उसक
                                                                                              ु
                                                                                              े
    हाथ स किसल कर िीच चगर गया| उसका बहत सा शहद ज़मीि पर बबखर गया और वह उदास हो गया| उसि जजतिा शहद ऊपर -ऊपर
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    स उठा सकता था, उठाकर वापपस बतदि में डाल ललया और शष ज़मीि पर ही बबखरा रहा|
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                                                                  े
    क ु ि ही समय बाद बहत सी मजक्खया उस शहद पर मंडराि लगी और भर-पट बबखरा शहद चाटती रहीं| जब मजक्खयों का पट भर गया
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                                                     े
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    तो उन्होंि उड़िा चाहा परन्तु वह उड़ िा सकी क्योंकक उिक पख शहद में चचपक गई| वह जजतिा िटपटाती उतिा ही उिक पख शहद
                                                                                                         े
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    में चचपकत चल जा रह थ| उिक सार शरीर पर शहद बुरी तरह स चचपक चुका
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    था|
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    क ु ि मजक्खया तो उसमें लोट- पोट होकर ही मर गईं थी, तो क ु ि िटपटा रही
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                                                                   ं
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    थी| ऐसी जस्थनत में भी क ु ि िई मजक्खया शहद क लालच में वहा आती
      ं
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    रही|मरती,िटपटाती मजक्खयों स भी उन्होिें लालच करि का सबक िही ललया|
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    मजक्खयों की दुदशा, मूखदता व लालच दखकर व्यापारी बोला – जो लोग जीभ क
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    स्वाद क लालच में पड़ कर उसस जुड़ पररणामों पर ध्याि िहीं दत;वह वास्तव में इि मजक्खयों की तरह ही मूखद होत हैं| स्वाद क
                                                                                                              े
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    थोड़ी दर क सुख क खानतर  लोग अपौजटटक/ फ़ास्ट फ़ ू ड खात रहत हैं| इस तनिक स्वाद का दूरगामी प्रभाव हमार स्वास््य पर क्या
                                                                      ं
                                                                                      े
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    होगा; भूल जात हैं और किर पवलभन्ि रोगों स ग्रस्त तड़पत और जल्द ही जीविात को प्राप्त हो जात हैं |
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    संदश – लालच बुरी बला,स्वास््य हजार नियामत |
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                                                                िाम - हिाि बरकत
                                   े
                               े
           संयम स्वयं पर रख, रख इस सलामत ||
                                                                कक्षा - सातवीं ई
                  अमूल्य शब्द                                         संस्क ृ त श्लोक /दहंदी अिुवाद सदहत
                                                                   गते शोको ि कतदव्यो भपवटयं िैव चचंतयेत|
     दहंदी सुजक्त—
                                                                      वतदमािेि कालेि वतदयजन्त पवचक्षणः||
              े
      “काल कर सो आज कर,आज कर सो अब|
                                   े
                                                                   अथादत – जो समय बीत गया उस पर चचंता करिा
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       पल में परलय हो जायगी,किर तू करगा कब?||”               व्यथद ह|
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                                                                   ै
      भावाथद – अपिे कायद को कल पर मत टालो|                           अब कवल आज और वतदमाि पर ध्याि दकर
                                                                      े
                                                                                                      े
               कल करिे वाले काम को,                                  अपि आि वाल भपवटय को सुधारो|
                                                                               े
                                                                          े
                                                                     े
                                                                                ै
                                                                                             े
                                         ें
               आज अभी समय रहते पूरा कर ल I                           बुद्चधमाि वही ह जो वतदमाि क महत्व को जािकर
                                                                         ै
                                                             कायद करता ह |

                                                                े
                                                             संदश- समय क महत्व को जािो और कायद करो|
                                                                          े
               कल क्या जस्थनत हो , िहीं जाि सकते|
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               समय, जो आज का बीत गया, किर तू करगा कब?
                                                                            ऋीक ृ नतका 8G
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      संदश – वतदमाि / ‘समय क महत्व’ को जािो|
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