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मgने कहा हट पगल! उनक दुख पढ़ती ह
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पुkष चूड़ी कस पहनेगा वे चढ़ सकती हg पेड़
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कायर कहगे सब तो उस ले9कन पेड़ पर नह! चढ़ती
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वो तो औरत का गहना ह कह!ं ट ू ट ना जाय डाल!,
तुJह शायद इसी जवाब का इSतजार था झड़ ना जाये प?ता
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तुमने पूछा कह!ं दद म ना आ जाये पड़,
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औरत का गहना पुkष क #लए वे पेड़ क दद को महसूसती ह
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तौह!न &य' ह उ भर पेड़ बनी रहती ह
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मgने कहा मत पहनो बस औरत अजीब पागल होती ह
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ले&चर मत झाड़ो तुमने कहा
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अभी पाजेब और पnलू तो मgने पूछ नह!ं वे पानी स +ेम करती ह
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बहत कम पानी से नहाती ह
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कम पानी पीती ह
औरत) पागल होती हF बाnट!, कन तर, मटका,
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टब सब भर रखती ह,
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औरत पागल होती ह 9कसी 1दन 9फर यू ह!
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वे जानवर' से +ेम करती ह आंख' क र ते Kर&त हो जाती ह,
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नद! भरती ह
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गाय,भgस,भेड़,बकर! समSदर उड़ेलती ह
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यहां तक 9क उनक बfच' तक से औरत सच मे पागल होती ह
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+ेम करती ह सोचता ह पुdष 9क सच म पागल हg औरत
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उन बfच' क जSम क व&त वे +ेम ह! करगी हर घड़ी,
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वैसी ह! पीड़ा क तनाव म रहती ह हर मौसम, हर हाल
जैसे खुद जन रह! ह' बfचा सच यह ह ले9कन
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बfचे क जSम क बाद व 9क वे पुkष से +ेम नह! करती
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तनाव क समSदर स बाहर आती ह, वे मनुMयता से +ेम करती ह
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जSम को उ?सव बना दती ह
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औरते हद पागल होती ह पुdष से वे तब तक ह! +ेम करती ह
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नीम से +ेम करती ह जब तक बची रहती ह उनम
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पीपल से +ेम करती ह मनुMय बने रहने क> संभावना
जंडी,क>कर, बेर! सबस
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पूजने क> हद तक +ेम करती ह
ब%तयाती हg उनसे सुख दुःख
मई – जुलाई 104 लोक ह ता र