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घुटन ों से रेंगते – रेंगते सीध़ा-स़ाध़ा भ ल़ा-भ़ाल़ा,
कब पैर ों पर खड़ा हुआ मैं ही सबसे अछॎछ़ा हूँ ,
तेरी ममत़ा की छ़ाोंव में, ककतऩा भी ह ज़ाऊों बड़ा,
ज़ाने कब बढ़ा हुआ….. म़ाों, मैं आज भी तेऱा बच्च़ा हूँ I
क़ाल़ा टीक़ा, दू ध मल़ाई
आज भी सब कु छ वैस़ा है,
मैं ही मैं हूँ हर जगह
म़ाों प्य़ार यह तेऱा कै स़ा है?
अर्चना
नव ीं “अ ”
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यूूँ त ह ते हैं सभी के प़ाप़ा अछॎछे , कजसने मेहनत कर हमें पढ़ाय़ा कलख़ाय़ा ,
पर मेरे कलए मेरे प़ाप़ा सबसे अछॎछे I और कभी ऩा हमें भूख़ा सुल़ाय़ा I
उूँगली पकडकर कजसने चलऩा कसख़ाय़ा, कम पड ज़ाएग़ा दुकनय़ा क़ा शब्द
भोंड़ार
कों ध ों पर बैठ़ाकर स़ाऱा सोंस़ार घुम़ाय़ा I
करते-करते प़ाप़ा क़ा सम्म़ान I
कभी प्य़ार से त कभी ड़ाूँट फटक़ार से कजसने
समझ़ाय़ा ,
और जीवन क़ा सही ऱास्त़ा बत़ाय़ा I
च़ाहे दुख ह य़ा सुख हमेश़ा प़ाप़ा क स़ाथ है प़ाय़ा
प्रियींका नेग
बारहव ‘अ’