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गींगा
गूंगा की क्या बाि कऱूूं , वह क ै सी घड़ी थी I
गूंगा उदास है सुनिे ही भागीरथ क े स्वर को,
वह जूझ रही है खुद से, वह दौड़ पड़ी थी I
मगर बदहवास है मतहमा यह देश की,
न अब वह रूंग ऱूप है, गररमा यह सूंस्क ृ ति की I
न वह तनखार है क ु छ कीतजए उपाय,
गूंगा अब फूं सी है,
प्रदूषण भगाइए,
बाूंधों क े जाल में कहीं
गूंगा पर आज आ रही
नहरों क े जाल में,
आओ क ु छ करें,
सर पीट-पीट रो रही,
गूंगा बजाएूं,
शहरों क े जाल में, इसे शुद्ध बनाएूं
नाले सिा रहे हैं,
खा-खा क े पान थूकने वाले सिा रहे हैं I
आई थी बड़े शौक से,
शूंकर को छोड़कर,
तवष्णु को छोड़कर,
अपने घर को छोड़कर,
खाsई थी अपने आप में,