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     धरती
                    देख रहा ह ूं मैं धरिी को कब से,
                    िल रहा है जीवन इस पर जब से I
                    शुऱू में थी या हरी-भरी,
                    अब हो गई दुख से भरी I
                    याद करिी है वह वहाूं प्यारे पल,
                    जो समय क े  साथ गए अब ढल I
                    उसने देखा था सूंसार पूरा,
                    जो लग रहा है उससे अब अधूरा I
                    देखे थे उसने भतवष्य क े  तलए सपने हजार,
                    जो अधूरे रह गए मेरे िार I
                    देिी है वह हमें हजारों उपहार,
                    तजसक े  तलए हमें देना िातहए उसे ढेर सारा प्यार I
                                                                    हम भूल रहे हैं तक हम उस धरिी में
                                                                    पड़े हैं,
                                                                    तजसक े  जूंगल हमारे कारण जले हैं I
                                                                    उस धरिी क े  तलए क ु छ अच्छा कर
                                                                    तदखाओ,
                                                                    और अपना कितव्य तनभाओ I
                                                                               नाम - चिकास चसिंह राित
                                                                                        कक्षा – दसिीं B





