Page 44 - CHETNA January 2019 - March 2019FINAL_Neat FLIP
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को ज़माने की धुिंध में उड़ाकर कब का सिंसार की रीतत पर क ू च कर चुका
था . . .'
सोचते-सोचते बदली की आँखों से आिंसू ककसी माला के मोततयों के
समान ट ू ट-ट ू टकर त्रबखरने लर्े. वह समझ नहीिं पाई कक उसकी आँखों से
तनकले हए ये आिंसू उसके ककसी पश्चाताप के थे या किर अपने प्यार की
ु
हसरतों के उजड़े हए चमन की बबाचदी देख कर? उसके सपनों का वह
ु
चमन जो कभी उसने अिंबर के साथ शमलकर महकाया था, आज
वास्तववकता के सामने आते ही अपने हर ककसी ि ू ल की खुशबू का
मोहताज़ हो चुका था. उसके प्यार की राहों में त्रबखरे हए ि ू ल उसकी
ु
जज़िंदर्ी के दुःख-ददच और पश्चाताप के कािंटे बनकर रह र्ये थे. जज़िंदर्ी के
प्यार में शमला हआ ऐसा मलाल कक जजस पर मजबूररयों का कफ़न डाल
ु
देने में ही आनेवाले हदनों में जीने की कोई राह तनकल सकती है. वैसे
अपने दुखों पर रो लेने में ही समझदारी है वरना, यूँ तो हर ककसी को
अपने घाव र्हरे नज़र आया करते हैं.
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काका शशकोहाबादी के दोहे
पत्ता-पत्ता उड़ र्या हर पतझड़ के साथ,
पेड़ निंर्ा रह र्या छाया का मोहताज,
सीधा-सच्चा जो बना उसे कहा बे-ईमान
जजसने सीखा तू-तड़ाका उसे शमला सम्मान.
सोने की गचडड़या था मेरा भारत महान,
सोना गर्रवी रख हदया महान का बस है नाम.
मच्छर काटें शहर में डेंर्ू का अत्याचार,
बच्चे मरें अस्पताल में डाक्टर को पड़े मार.
डायोसीज का हाल, शमशन के बने ठेके दार,
जैसे बाग़-बर्ीचों के बकरे ह ु ए चौकीदार.
44 | चेतना जनवरी 2019 - माचच 2019