Page 14 - HINDI_SB59_Letters3
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        यिद तुम जानना चाहत हो िक परम�र तुमसे �ा चाहता है, तो   एक मसीही भाई को नम्रता की दशा म� प्रस� होना
                    ु
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       उसस मागो, तो वह त�� आन� से दे देगा, �ोंिक वह उन सब   चािहए - �ोंिक वह प्रभु की �ि� म� बड़ा है।
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                                 ँ
               को बु�� देता है जो उस से मागत ह�।
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                                ं
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          लिकन िव�ास के  साथ मागो �ोंिक सदेह से भरा     लिकन धनवान को अपनी नीची दशा पर, �ोंिक वह शीघ्र ही
                                                           ू
                                                        उस फल के  समान जाता रहेगा, जो कड़ी धूप म� मर जाता है।
         मन हवा से उछलती �ई समुद्र की लहर के  समान
                   अ�स्थर होता है।









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           ध� है वह मन� जो परी�ा म� पड़न पर हार नहीं
          मानता, इस कारण वह अपना प्रितफल प्रा� करगा।
                                      े
                                                                 े
                                                                                े
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                                                      सुनन म� तेज, बोलन म� धीमा और क्रोध करन म� धीमा होना
                                   े
                                                         े
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                                                                                   �
       जब िकसी की परी�ा होती है तो वह कभी परम�र नहीं होता जो   सबस अ�ा है �ोंिक मन� का क्रोध उस धािमक जीवन
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                            े
      उसकी परी�ा करता है - �ोंिक परम�र कभी िकसी की परी�ा नहीं   को नहीं लाता है जो परम�र चाहता है।
                        लेता है।









                                                        े
                                                     परम�र उस धम� को �ीकार करता है, जो अनाथों और िवधवाओं
                                                        े
                                                                            ं
                                                     की दखभाल करता है, और �यं को ससार से अपिवत्र रखता है।




                 तुम एक
                नादान हो!











                                 ु
          जो कोई खुद को मसीही कहता है पर� अपनी जीभ को
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          िनयित्रत नहीं करता है वह िसफ खुद को धोखा दे रहा है,
                  और उसकी भ�� बकार है।
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     12 12                                   याकब 1:5-27याकू ब 1:5-27
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