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“व्यथा” िकताब : ग्यान का िपटारा
शेतकरी म्हणे,पाऊस ये रे, िकताब से प्राप्त होता है ग्यान
दुःख आमुचे सोबती ने रे.
जो समाज में रंग भरकर करता है कल्याण |
कंटाळून दुष्काळाला,पीक तरसती पाण्याला, दुिनया भर की जानकारी और खबरे पहूँचाता है,
कोरड्या विहिरी पाहवेना,हाल जमिनीचे सोसवेना, जो भ्रष्टाचार के प्रितवाद-िववाद आजमाता है |
या पामराची हाक ऐक रे,
दुःख आमुचे सोबती ने रे. वर्णमाला से लेकर कहािनयों तक,
िकताबों का होता है उपयोग |
हाक ऐकली परमेश्वराने, शब्दकोश से लेकर िवश्वकोश तक,
जमिनी न्हाहाळया पाण्याने,
तरी का बारा व्यथा न संपे रे, िकताबों से ही िमलता है सहयोग |
दुःख आमुचे सोबती ने रे िवचार, दास्तावेज और लेख,
. सारे िकताबों में ही होते है कैद |
गेली घरे आमुचे वाहोनी,
पीक गेली रे आमुचे निस्टोनी, िकताब है सुखी संसार का अमूल्य म्यान,
उजाडलेला संसार पाहवेना रे, िकताब से ही िमलता है संसार को ग्यान |
दुःख आमुचे सोबती ने रे.
इसीलिए कहते है िकताब को ग्यान का िपटारा,
दुष्काळही पाहवेना, जो हमारे हर सपनों को करता है पूरा |
अतिवृष्टीही सोसवेना, जीवन की इस कहानी में िकताब है अद्भूत,
राहिला ना कोणता सणवार रे,
दुःख आमुचे सोबती ने रे. जो बनाता एक अग्यानी को सुत |
Kanishka Patil Ved Bute
(VIII) (VIII)