Page 31 - Sunil
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सकता  ऺूाँ; मेिी  पत्नी, मेिे  बच्े, इस  पृथ्वी  पि  मेिे  लोग  वजनसे  मैं  प्रेम  किता  ऺूाँ....अब, यहााँ  देन्डखए, भाई  ब्रन्म; मैं  आपको
               बताने जा िहा ऺूाँ, वक क्या आपका मतलब है, वक मैं...... आपको क  छ भी बुंद किने की आवषॎयकता नहीुं है; आप तो बस
               अन्दि आ जायें, वह ख द अपने आप ही बुंद हो जायेगा। लेवकन-लेवकन आप तो कहते हैं, “ठीक है, मैं वह नहीुं कऱूुं गा, म झे
               वह नहीुं किना है। मैं तो कलीवसया से ज डा हुआ ऺूाँ मैं तो वैसा ही भला ऺूाँ जैसे आप या अऩॎय औि कोई है।” वबलक  ल ठीक
               है, भाई।  यह  वबलक  ल  ठीक  है, आप  उस  पि  कान  लगायें  जो  सच्ाई  है। “ठीक  है, अब  यहााँ  स वनएुं , क्या  वपता, प ि, औि
               पववि आत्मा... “ठीक है, यवद आप इसे उसी प्रकाि से ही किते िहना चाहते हैं, तो आप उसे वैसे ही किते िहें। आप स न
               च के  हैं, वक त िही का क्या शब्द था; औि आप उस सुंदेश को स न च के  हैं जो यह देता है। औि बाइवबल कहती है....(हे
               पिमेश्वि, उसे देन्डखए,क्या ठीक इस समय यह मेिे वलए अगले क  छ घन्टोुं के  वलए एक मूलपाठ नहीुं बना देगा?)...यवद त िही
               का शब्द स्पि न हो... यवद आपकी नामधािी कलीवसया कहती है, “वपता, प ि, औि पववि आत्मा”;यह तो वैसा शब्द नहीुं है

               जो त िही का शब्द होता है। “यवद त िही का शब्द स्पि न हो, तो कौन अपने आप को य द्ध के  वलए तैयाि किेगा?”

               153.    पिन्त  यवद वह दास दृ़िता से कहे, मैं अपने स्वामी से प्रेम किता ऺूाँ......। “मैं —मैं उस शैतान से प्रेम किता ऺूाँ जो-
               जो म झ से इन कामोुं को किवाता है; यह वबलक  ल ठीक बात है। औि मैं नहीुं सोचता ऺूाँ.....मैं सोचता ऺूाँ, वक आप तो बस
               बहुत ही सुंकीणट-ब न्डद्ध वाले हैं जो वहााँ पि हैं.....मैं सोचता ऺूाँ, वक आप तो बस बहुत ही सुंकीणट-ब न्डद्ध वाले हैं। यह वबलक  ल
               ठीक बात है। मैं इन कामोुं से प्रेम किता ऺूाँ। मैं —मैं सोचता ऺूाँ, वक हमािे पास इस प्रकाि की बडी बडी चीजें होनी चावहए,
               औि हमें यह किना चावहए, सुंसाि....औि हमािी कलीवसया में तो नाच होते हैं, बन्को खेल होते हैं, औि इसी प्रकाि के  कायट-
               कलाप होते हैं, औि हमािा एक बडा ही अच्छा समय चल िहा होता है, औि वे तो ठीक वैसे ही अच्छे हैं जैसे वक आपके  पास
               वहााँ  ऊपि  कोई  भी  झ ण्डड  होगा।” ठीक  है, यह  वबलक  ल  ठीक  बात  है।  वबलक  ल  ठीक  है!| मैं...न  चला  जाऊाँ गा....(आप
               स्वतन्त्ता की आत्मा में आप इस प्रकाि की बातें किते हैं)... तो उसका स्वामी....(शैतान)...उसको ऩॎयावययोुं के ..(पिमेश्वि के )...
               पास ले चले; वफि उसको द्वाि के  वकवाड वा बाजू के  पास ले जाकि.... (यह क्या है? द्वाि कौन है?)...(मुंडली कहती है, “यीश
               मसीह” - सम्पा.) “मैंने तेिे सामने एक द्वाि िखा है।” वह पश  की छाप कब लगी? इस काल में जब वह ख ला द्वाि िखा गया

               था, तब पश  की यह अन्डन्तम छाप लगती है) ...उसको द्वाि के  वकवाड वा बाजू...(यह है वक उसको कलविी के  पास ले जाये,
               क्या यह वबलक  ल ठीक बात है?)....के  पास ले जाकि उसके  कान में स तािी से छे द किे; तब वह सदा उसकी सेवा किता
               िहे। “भाई ब्रन्म, आपका क्या तात्पयट है?” यवद आप स समाचाि की सच्ाई को स नते हैं, औि उसमें चलने से इन्काि कि
               देते हैं, तो पिमेश्वि आपके  कान में ऐसा छे द कि देता है वक आप उसे वफि कभी नहीुं स नते हैं। आप मृत्य  औि जीवन की
               िेखा को ही पाि कि च के  होते हैं। इसके  बाद आप अपने शेष सभी वदनोुं के  वलए अपनी नामधािी कलीवसया के  साथ ही
               हमेशा के  वलए चलते चले जा िहे होते हैं। बच्ोुं, उवजयाले में चलो। यह सच है। त म उस स्वामी की हमेशा हमेशा के  वलए
               सेवा किते िहोगे।

               154.    ऐसा  है...आप  नहीुं  चाहते  हैं....देन्डखए, त िही  फें की  जा  च की  है, औि  वहआजाद  होकि  जा  सकता  है; यह  तो
               पिमेश्वि का ही अन ग्रह है। यह ज बली वषट है, यह सम्पूणटता का वषट है। भाई, पाप का वदन खत्म हो च का है। आप जो पाप
               की सेवा कि िहे हैं, मैं आप में से हि एक को बताता ऺूाँ, चाहे आप इसे र्ेप पि स नते होुं, या आप दृषॎय श्रोताओुं में होुं....हि
               एक वह जन जो पाप की सेवा कि िहा है जान ले, पाप का वदन खत्म हो च का है। यीश  मिा था; अतः आपको पाप की औि
               अवधक सेवा नहीुं किनी है। आपको धावमटक-मतोुं औि नामधािी कलीवसयाओुं को नतमस्तक नहीुं होना है। “वजसे प ि ने
               स्वतन्त् वकया है वह सचम च में स्वतन्त् है। यवद आप स्वतन्त् होकि जाना चाहते हैं औि प ि में स्वतन्त् होना चाहते हैं, तो
               आप उन सब बातोुं को कार्कि म ि हो जायें औि उसकी सेवा किें। आगे ब़िे। आमीन! पिन्त  यवद आप ऐसा नहीुं किना
               चाहते हैं, तो आपकी सुंस्था, आपको स्वामी, वह जो कोई भी है वजसकी आप सेवा कि िहे हैं, आपके  कान में छेद कि देगा,
               औि आप इसे वफि कभी नहीुं स न पायेंगे। यवद पिमेश्वि कभी आपके  ह्रदय से यह बात किता है, “आ जाओ, यही वह समय
               है, औि आप इसे ठ किा देते हैं, तो वफि आप उसकी(पश  की) छाप को ग्रहण कि लेते हैं, आप सत्य के  प्रवत कठोि हो जाते
               हैं। यही तो शैतान की मोहि है, यही तो पश  की छाप है। समझे आप? पश  की छाप क्या किती है? वह आपको वापस िोमन
               मत में, नामधािी कलीवसयायी मत में धके ल डालती है, औि वफि आप कभी भी अन्दि नहीुं आते हैं औि स्वतन्त् नहीुं होते हैं,
               आप हमेशा हमेशा के  वलए उसकी  ही सेवा किते िहते हैं। यही तो पश  की छाप होती है। वमिोुं, यह कठोि बात है; यह
               कार्-छाुंर् किनेवाली बात है, पिन्त  यही है वह जो...मैं इसके  वलए वजम्मेदाि नहीुं ऺूाँ.....उसी के  वलए वजम्मेदाि हैं जो बाइवबल

               कहती है।

               155.    अब  देन्डखए, प िाने  वनयम  में  पाये  जाने  वाला  यह  उदाहिण  उसकी  प्रवतछाया  था, वक  आप  स समाचाि  की
               ख शखबिी को स न िहे होुंगे, वक आप स्वतन्त् हैं। आपको बन्ध वाई में औि अवधक िहने की आवषॎयकता नहीुं है, आप मसीह
               यीश  में पूिी तिह से स्वतन्त् हैं। आप पि कोई पाप औि ऐसी बातें नहीुं हैं। आप नहीुं हैं.... आप जो सुंसाि से प्रेम किते हैं,
               आपके  वलए बाइवबल कहती है, “यवद त म सुंसाि से या सुंसाि की बातोुं से प्रेम किते हो, तो पिमेश्वि का प्रेम त म्हािे अन्दि है
               ही नहीुं।” क्या यह सच है? यवद आप सुंसाि से या सुंसाि की चीजोुं से प्रेम किते हैं, तो पिमेश्वि का प्रेम आपके  अन्दि नहीुं
               है।तो वफि इन बडे बडे कायट कलापोुं के  ववषय में क्या है जो आज सुंसाि में धमट के  नाम पि हो िहे हैं? वे सुंसाि के  काम हैं।
               औि लोग उसके  अन्दि ठीक वैसे ही घ सते चले जाते हैं जैसे स अि स अि वाले दडबे में घ स जाता है, औि आप कहते हैं,
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