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AjÉÉïiÉ eÉÉå urÉÌ£ü uÉåSÉåÇ Måü AlÉÑxÉÉU AÉcÉUhÉ lÉWûÏÇ MüUiÉÉ uÉWû cÉÉWåû ÌÄTüU oÉëɼhÉ
                          WûÏ YrÉÉåÇ lÉ WûÉå uÉWû zÉÔSì xÉå pÉÏ ÌlÉqlÉ Wæû YrÉÉåÇÌMü  oÉëɼhÉ MüÉ kÉqÉï xÉSÉ xÉå WûÏ
                          AÎalÉWûÉå§É AjÉÉïiÉ ¥ÉÉlÉ MüÐ CcNûÉ UZÉlÉå uÉÉsÉÉ, SÍqÉiÉ CcNûÉ LuÉÇ zÉÉliÉ mÉëMØüÌiÉ

                          MüÉ Wæû| oÉëɼhÉ uÉxiÉÑiÉ: uÉWû WûÉå xÉMüiÉÉ Wæû ÎeÉxÉ urÉÌ£ü lÉå ExÉ xÉirÉ MüÉ AlÉÑpÉuÉ

                          AÉæU xÉɤÉÉiMüÉU ÌMürÉÉ AÉæU sÉaÉÉiÉÉU ExÉ iɨuÉ ÍcÉliÉlÉ qÉåÇ sÉÏlÉ Wæû| oÉëɼhÉiuÉ MüÉ
                          AjÉï  cÉåiÉlÉÉ  Måü  E¨ÉUÉå¨ÉU  ÌuÉMüÉxÉ  MüÉ  lÉÉqÉ  Wæû  uÉWû  AmÉlÉå  ¥ÉÉlÉ  Måü  qÉÉkrÉqÉ  xÉå
                          xÉÇmÉÔhÉï xÉirÉ MüÉ xÉɤÉÉiMüÉU MüU AmÉlÉå AlÉÑpÉuÉ MüÉå qÉlÉÑwrÉ qÉÉ§É Måü MüsrÉÉhÉ Måü

                          ÍsÉrÉå ÌlÉrÉÉåÎeÉiÉ MüUiÉÉ Wæû| भगवान बु  oÉëɼhÉ ÌuÉwÉrÉMü AmÉlÉÏ AuÉkÉÉUhÉÉ MüÉå

                          xmɹ MüUiÉå WÒûLã MüWûiÉå WæÇû  क  ा मण न तो जटा से होता है, न गो  से

                          और न ज म से। uÉÉxiÉÌuÉMü oÉëɼhÉ uÉWûÏ Wæû िजसम  स य है, धम  है और         जो

                          प व  है, जो अ कं चन है,  कसी तरह का प र ह नह ं रखता, जो  यागी
                          है, उसी को म   ा मण कहता हू ँ। कमल के  प ते पर िजस तरह पानी

                          अ ल त  रहता है या आरे  क  नोक पर सरस  का दाना, उसी तरह जो

                          आदमी भोग  से अ ल त रहता है, उसी को म   ा मण कहता हू ँ। चर या

                          अचर,  कसी  ाणी को जो दंड नह ं देता, न  कसी को मारता है, न  कसी
                          को मारने क   ेरणा देता है उसी को म   ा मण कहता हू ँ।   ा मण म

                          उसे कहता हू ँ, जो अप र ह  है, िजसने सम त बंधन काटकर फ  क  दए

                          ह , जो भय वमु त हो गया है और संग तथा आसि त से  वरत है।                   - जो

                           बना  च त  बगाड़े, हनन और बंधन को सहन करता है,  माबल ह                          -
                          िजसका सेनानी है, म  उसी को  ा मण कहता हू ँ। जो अ ोधी है,  ती है,

                          शीलवान  है,  बहु  ुत  है,  संयमी  और  अं तम  शर र  वाला  है,  उसे  ह   म

                           ा मण कहता हू ँ। कमल के  प ते पर जल और आरे क  नोक पर सरस
                          क  तरह जो  वषयभोग  म   ल त नह ं होता             -, म  उसे ह   ा मण कहता

                          हू ँ। जो चर वरत हो  - अचर सभी  ा णय  म   हार      -, जो न मारता है और न

                          मारने क   ेरणा ह  देता है, उसे म   ा मण कहता हू ँ। जो ऐसी अकक  श,

                          आदरयु त और स यवाणी बोलता हो  क िजससे  कसी को जरा भी पीड़ा
                          नह ं पहु ँचती हो, म  उसे  ा मण कहता हू ँ। बड़ी हो चाहे छोट , मोट  हो

                          या पतल , शुभ हो या अशुभ , जो संसार म   बना द  हु ई  कसी भी चीज

                          को नह ं लेता, उसे म   ा मण कहता हू ँ। िजसने यहाँ पु य और पाप दोन

                          क  ह  आसि त छोड़ द  है और जो शोकर हत,  नम ल और प रशु  है,

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