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उसे म   ा मण कहता हू ँ। मानुष भोग  का लाभ छोड़  द य भोग  के  लाभ
                          को भी िजसने लात मार द  है,  कसी लाभलोभ म  जो आस त नह ं                   -, उसे

                          म    ा मण  कहता  हू ँ। राग  और  घृणा  का  िजसने   याग  कर   दया  है,

                          िजसका  वभाव शीतल है और जो  लेशर हत है, ऐसे सव लोक वजयी                       -

                          वीर पु ष को  म   ा मण कहता हू ँ। िजसके   पूव , प चात और म य  म
                          कु छ  नह ं  है  और  जो  पूण तया  प र हर हत  है    -,  उसे  म    ा मण  कहता

                          हू ँ।जो  यानी,  नम ल, ि थर, कृ तकृ  य और आ व से र हत              (  च तमल   )

                          है,  िजसने  स य  को  पा   लया  है,  उसे  म    ा मण  कहता  हू ँ।  जो  मन,

                          वचन और काया से कोई पाप नह ं करता अथा त इन तीन  पर िजसका
                          संयम है, उसे म   ा मण कहता हू ँ। िजसने घृणा का  य कर  दया है,

                          जो भल भाँ त जानकर अकथ पद का कहने              - वाला है और िजसने अगाध

                          अमृत   ा त  कर   लया  है,  उसे  म    ा मण  कहता  हू ँ।जो  पूव ज म  को
                          जानता है, सुग त और अग त को देखता है और िजसका पुनज  म  ीण

                          हो गया है तथा जो अ भमान परायण है             (  द य  ान   ), उसे म   ा मण

                          कहता  हू ँ।  ज म  से  कोई   ा मण  नह ं  होता।  न  जटा  रखने  से  कोई

                           ा मण होता है, न अमुक गो  से और न  ज म से ह । िजसने  स य

                          और  धम   का  सा ा कार  कर   लया,  वह   प व   है,  वह    ा मण  है।जो
                          गंभीर   ावाला है, मेधावी है, माग  और अमाग  का  ाता है और िजसने

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                          स य पा  लया है, उसे म   ा मण कहता हू ँ ।  न  त के  अनुसार –“  म
                          जाना त  ा मण: --  ा मण वह है जो   म अं तम स य                   ), ई वर या
                          परम  ान  "     ई वर  ाता        -   "  को जानता है। अतः  ा मण का अथ  है     (|

                           क तु  ह दू समाज म  ए तहा सक ि थ त यह रह  है  क पारंप रक पुजार

                          तथा पं डत ह   ा मण होते है।
                           “oÉëɼhÉ Måü ÍsÉrÉå rÉWû AÉSzÉï jÉÉ uÉWû AirÉliÉ ÌlÉUÏWû pÉÉuÉ aÉUÏoÉÏ MüÐ ÎÄeÉÇSaÉÏ qÉåÇ

                                                                                 11
                          UWåû:  mÉUliÉÑ  FÇcÉå  xÉå  FÇcÉÉ  ¥ÉÉlÉ  AÉæU  cÉËU§É  oÉsÉ  UZÉå” |  CxÉ  MüÉ  AÉæU  xmɹ


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                            न जटा ह न गो ते ह न ज चा हो त  ा मणो। यि ह स चं च ध मो च सो सुची सो च  ा मणो॥ अ कं चनंअनादानं
                          तमहं  ू म  ा मणं॥  वा र पो खरप ते व आर गे  रव सासपो। यो न  ल प त कामेसु तमहं  ू म  ा मणं॥  नधायदंडं
                          भूतेसु तसेसु ताबरेसु च।यो न हि त न घाते त तमहं  ू म  ा मणं॥  कं  ते जाटा ह दु मेध कं  ते अिजनसा टया।  !
                          अ भ तरं ते गहनं बा हर प रम ज स॥...............
                          11  AzÉûÉåMü Måü ÄTÔüsÉ mÉ. 55
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