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द ण पि चम रलवे 12 ई- ितिबब
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‘’अल वदा लसी ‘’
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म सबह सबह टहलने के लए जा रहा था, रा त े म एक कड़ े के ढ़ेर के पास एक ब ल का छोटा
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सा ब चा याऊ- याऊ कर रहा था। मन े उसक तरफ यादा यान नह ं दया, म अपने रा त े
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चला गया। जब थोड़ी दर म , म वापस आया तो ब ल का ब चा वह ं पर उसी तरह याऊं याऊं
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कर रहा था। इस बार मर पांव, वहां क गय और म उसक तरफ देखने लगा, ब चा बहत छोटा
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था, ठडी हवा चल रह थी और थोड़ी दर पहल ह बरसात बरस कर नकल थी। ब चा पानी म परा
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भीगा हआ था और ठड स बर तरह स कांप रहा था। म सोचने लगा क शायद वह अपनी मां से
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बछड़ गया ह, मन े सोचा मझ े उसक मदद करनी चा हए और मन े ब चे को उठा लया और एक सर ीत जगह पर
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उस ल जाकर छोड़ दया और म जाने लगा, पर मन े देखा क वह ब चा मेरे पछे– पछे भागने लगा। म क गया मन े
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फर स उस उठाया और थोड़ी दर उस ल जाकर रख दया। य सोचकर क हो सकता ह, उसक मां उसक लए परशान
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हो और उस ढढ रह हो, ब चे को छोड़त ह फर वह मर पीछ-पीछ भागने लगा। इस बार म का और सोचने लगा,
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या क इसका, कह ं यह ठड स मर न जाय, इस बार उस गोद म उठा लया और अपने कमर म ल आया।
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मन े उस अ छ तरह प छा और खाने को दया, थोड़ा दध भी रखा था, मर पास उसने खाया और पया वह भखी
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थी वह खा-पीकर आराम स सो गयी। जब म काम पर जाने लगा तो उस साथ ल गया और रा त म , मन े सोचा वह
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अपनी मां को ढढ लगी और उसक पास चल जायगी। जब रात म वापस आया तो देखा क वह ब ल का ब चा मेरे
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कमर क दरवाज क पास बठा था। मन े उसे फर से खाना खलाया और इस बार उसे दर छोड़ आया और आ कर सो
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गया। सबह मन े जसै े ह दरवाजा खोला, म च क गया क वह ब ला का ब चा मेरे कमरे के दरवाजे पर बठै थी और
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मझ दखत ह याऊ – याऊ करने लगी। मझ बड़ा आ चय हआ और मझ उस पर दया आ गयी और मन े उसे अपने
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साथ रख लया और मन े उसका नाम ‘’लसी’’ रख दया।
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म खाना बनाता, लसी वह बठ रह , बाद म हम दोन खाना खात, दध पीत और फर म लसी को बाहर नकाल
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कर काम पर चला जाता और जब वापस आता तो लसी वह दरवाज पर बठ मरा इतजार करती रहती, रोज़ क
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हमार यह दनचया हो गयी थी। खाना बनाना हम और लसी खाना खाना और फर काम पर जाना। अब लसी को
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मर आने का समय मालम हो गया, वह कह ं भी रह पर मर आने क समय दरवाज पर ह मलती थी। म जस ह
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दरवाजा खोलने लगता वह दोन पांव स दरवाज पर खडी हो जाती और अ दर आत ह मर बग क पास याऊ- याऊ
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करने लगती और म उसक लए कछ-न-कछ ज र लाता लसी खश हो जाती। कछ समय बाद म लसी को कमर म
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छोड़कर खड़क खल छोड़कर चला जाता लसी जब मन चाहा बाहर चल जाती और जब मन चाहा कमर म आकर
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आराम करती।
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वस तो लसी को मांस, मछल , दध यादा पसंद था, पर उस जो भी मलता वह खा लती थी। अगर मर कमर म
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कोई दसर ब ल आती तो लसी उसस झगड़ने लगती शायद वह कहना चाहती थी क यह मरा घर ह और म अपने
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घर म कसी और को अ दर आने क इजाजत नह ं देती उसके बारे म ऐसा सोच कर मेर हंसी छट जाती ।
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म अ सर खाना बनाता, दध गरम करता और उसे ठंडा होने के लए रखकर नहाने चला जाता वापस आने पर हम
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दोना आराम स खात। लसी को दध बहत पसंद था, पर वह कभी भी बना मर इजाजत क कसी भी चीज को हाथ
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नह ं लगाती थी ।
एक दन मन े खाना बनाया, दध गरम कया और दध को खला छोड़कर नहाने चला गया। लसी वह ं पर बठ थी।
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जब म नान करक वापस आया तो म च क गया क बतन म का सारा दध गायब ह। लसी पर मझ बहत व वास
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था, य क लसी ने आज तक बना दय कछ छआ नह ं था। म सोचने लगा आ खर दध गया तो कहां गया तभी मन े
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लसी क तरफ दखा लसी क मह पर दध लगा था, मझ बड़ा आ चय हआ म सोचने लगा लसी ने आज तक ऐसा नह ं
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कया आज ऐसा य कया मझ लसी पर बड़ा ग सा आया और मन े लसी को मारने के लए लकड़ी उठाई और उसे
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िहदी जस ै ी सरल भाषा दसरी नह ह। ै
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-मौलाना हसरत मोहानी