Page 12 - Pratibimba 34 final_Neat1
P. 12

ब
                                                                                                                 ं
                                                                                                       - ितिब
                                                                                                                 ं
                                                                                                                 ं
                                                                                                                 ब
                                                                                                       - ितिब
      द  ण पि चम रलवे                                      12                                        ई- ितिबब
                    े
                                                                                                     ई ई
        ह बि ल मंडल
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                                                   ‘’अल वदा लसी ‘’
                                                                   ू
                           म    सबह सबह टहलने के   लए जा रहा था,  रा  त े म  एक कड़ े के  ढ़ेर के  पास एक  ब  ल  का छोटा
                               ु
                                                                              ू
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                                        ं
                           सा ब  चा   याऊ-  याऊ कर रहा था। मन   े उसक  तरफ   यादा   यान नह ं  दया, म    अपने रा  त े
                                              ं
                           चला गया। जब थोड़ी दर म , म    वापस आया तो  ब  ल  का ब  चा वह ं पर उसी तरह   याऊं    याऊं
                                               े
                           कर रहा था। इस बार मर पांव, वहां  क गय और म    उसक  तरफ देखने लगा, ब  चा बहत छोटा
                                                े
                                                 े
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                                                                                                        ु
                                ं
                           था, ठडी हवा चल रह  थी और थोड़ी दर पहल ह  बरसात बरस कर  नकल  थी। ब  चा पानी म  परा
                                                           े
                                                                 े
                                                                                                             ू
                                             ं
                           भीगा हआ था और ठड स बर  तरह स कांप रहा था। म    सोचने लगा  क शायद वह अपनी मां से
                                                            े
                                                 े ु
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                      ै
            बछड़ गया ह, मन   े सोचा मझ े उसक  मदद करनी चा हए और मन   े ब  चे को उठा  लया और एक सर ीत जगह पर
                                                                                                 ु
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                े
           उस ल जाकर छोड़  दया और म    जाने लगा, पर मन   े देखा  क वह ब  चा मेरे  पछे– पछे भागने लगा। म     क गया मन   े
                                                                                    ै
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                                                               े
            फर स उस उठाया और थोड़ी दर उस ल जाकर रख  दया। य सोचकर  क हो सकता ह, उसक  मां उसक  लए परशान
                                                                                                           े
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                                                          े
           हो और उस ढढ रह  हो, ब  चे को छोड़त ह   फर वह मर पीछ-पीछ भागने लगा। इस बार म     का और सोचने लगा,
                                                                    े
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             या क  इसका, कह ं यह ठड स मर न जाय, इस बार उस गोद म  उठा  लया और अपने कमर म  ल आया।
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              मन   े उस अ  छ  तरह प छा और खाने को  दया, थोड़ा दध भी रखा था, मर पास उसने खाया और  पया वह भखी
                                                                             े
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                                                                          े
           थी वह खा-पीकर आराम स सो गयी। जब म    काम पर जाने लगा तो उस साथ ल गया और रा  त म , मन   े सोचा वह
                                  े
                                                                                 े
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                            े
           अपनी मां को ढढ लगी और उसक पास चल  जायगी। जब रात म    वापस आया तो देखा  क वह  ब  ल  का ब  चा मेरे
                                       े
                                                      े
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           कमर क दरवाज क पास बठा था। मन   े उसे  फर से खाना  खलाया और इस बार उसे दर छोड़ आया और आ कर सो
                                  ै
                                                                                      ू
           गया। सबह मन   े जसै े ह  दरवाजा खोला, म    च क गया  क वह  ब  ला का ब  चा मेरे कमरे के  दरवाजे पर बठै   थी और
                  ु
                े

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           मझ दखत ह    याऊ –  याऊ करने लगी। मझ बड़ा आ  चय हआ और मझ उस पर दया आ गयी और मन   े उसे अपने
              े ु
                                                  े ु
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           साथ रख  लया और मन   े उसका नाम ‘’लसी’’ रख  दया।
                                              ू
              म    खाना बनाता, लसी वह  बठ  रह , बाद म  हम दोन  खाना खात, दध पीत और  फर म    लसी को बाहर  नकाल
                                       ै
                                                                       े
                                                                                े
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                                                                             ै
           कर काम पर चला जाता और जब वापस आता तो लसी वह  दरवाज पर बठ  मरा इतजार करती रहती, रोज़ क
                                                                        े
                                                          ू
           हमार  यह   दनचया  हो गयी थी। खाना बनाना हम और लसी खाना खाना और  फर काम पर जाना। अब लसी को
                                                                                                         ू
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           मर आने का समय मालम हो गया, वह कह ं भी रह पर मर आने क समय दरवाज पर ह   मलती थी। म    जस ह
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                                                              े
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                                                                                                              ं
           दरवाजा खोलने लगता वह दोन  पांव स दरवाज पर खडी हो जाती और अ  दर आत ह  मर बग क पास   याऊ-  याऊ
                                                                                          ै
                                                                                       े
                                             े
                                                    े
                                                                                        े
                                                                                                        ं
           करने लगती और म    उसक  लए कछ-न-कछ ज र लाता लसी खश हो जाती। कछ समय बाद म    लसी को कमर म
                                 े
                                                                                                            े
                                                                   ु
                                                                                                 ू
                                                              ू
                                                                                ु
                                               ु
                                        ु
                                                                                                      े
           छोड़कर  खड़क  खल  छोड़कर चला जाता लसी जब मन चाहा बाहर चल  जाती और जब मन चाहा कमर म  आकर
                           ु
                                                 ू
           आराम करती।
                                                                  े
                 े
                                                                                                      े
                                                                                                            े
                                                                                                       े
              वस तो लसी को मांस, मछल , दध   यादा पसंद था, पर उस जो भी  मलता वह खा लती थी। अगर मर कमर म
               ै
                                                                                        े
                      ू
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                                            े
                                                                                                   ै
           कोई दसर   ब  ल  आती तो लसी उसस झगड़ने लगती शायद वह कहना चाहती थी  क यह मरा घर ह और म    अपने
                                                                                            े
                                     ू
                ू
           घर म   कसी और को अ  दर आने क  इजाजत नह ं देती उसके  बारे म  ऐसा सोच कर मेर  हंसी छट जाती ।
                                                                                                     ू
           म    अ  सर खाना बनाता, दध गरम करता और उसे ठंडा होने के   लए रखकर नहाने चला जाता वापस आने पर हम
                                  ू
                                                                                         े
                                                                              े
                        े
                             े
           दोना आराम स खात। लसी को दध बहत पसंद था, पर वह कभी भी  बना मर  इजाजत क  कसी भी चीज को हाथ
                                        ू
                                ू
                                             ु
           नह ं लगाती थी ।
              एक  दन मन   े खाना बनाया, दध गरम  कया और दध को खला छोड़कर नहाने चला गया। लसी वह ं पर बठ  थी।
                                                                                                         ै
                                                                                             ू
                                        ू
                                                                  ु
                                                          ू
           जब म      नान करक वापस आया तो म    च क गया  क बतन म  का सारा दध गायब ह। लसी पर मझ बहत  व  वास
                           े
                                                                                     ै

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                                                                                        ू
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                                                                                                      ु
           था,   य  क लसी ने आज तक  बना  दय कछ छआ नह ं था। म    सोचने लगा आ खर दध गया तो कहां गया तभी मन   े
                       ू
                                                    ु
                                                                                     ू
                                             े ु

                         े
           लसी क  तरफ दखा लसी क मह पर दध लगा था, मझ बड़ा आ  चय हआ म    सोचने लगा लसी ने आज तक ऐसा नह ं
                                  े
                                     ु
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            कया आज ऐसा   य   कया मझ लसी पर बड़ा ग  सा आया और मन   े लसी को मारने के   लए लकड़ी उठाई और उसे
                                         ू
                                                     ु
                                                                         ू
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                                    िहदी जस ै ी सरल भाषा दसरी नह  ह। ै
                                     ं
                                                       ू
                                                                                               -मौलाना हसरत मोहानी
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