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द ण पि चम रलवे 13 ई- ितिबब
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मारना चाहा पर लसी अपनी जगह स हट नह ं मन े अपना हाथ रोक लया और दोबारा उसे डांटा और उसे मारने के
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लए उठा। लसी इस बार भी अपनी जगह स हट नह ं और मझ उस पर दया आ गयी और मन े उसे गोद म उठा लया
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वह मर तरफ दखकर शायद ‘’सॉर ’’ बोलना चाहती इसी लए एक टक मझ ह दख रह थी। तभी मन े यान से देखा
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तो, मझ लसी का रग कछ अलग सा दखा, उसका शर र कछ नीला हो गया था और उसक पलक बंद हो रह थी।
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मन े कहा या हआ लसी, म उस अपने गोद म रख कर सहलाने लगा। लसी का सारा शर र थर-थर कांप रहा था और
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दखत ह दखत लसी का सारा शर र काला पड़ गया। मर कछ समझ म नह ं आ रहा था क या हो गया। मन े लसी
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को जमीन पर खड़ा कया तो लसी जमीन पर गर पड़ी। मरा मन खटका, म कमर म चार तरफ दखने लगा, म
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दखकर दग रह गया क कमर म एक काला जहर ला सांप बठा था और उसी ने बतन म रखा दध पी लया था।
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पडो सय क मदद स मन े उस बाहर नकाला। लसी ने सांप को दध पीत हए दख लया था और बचा हआ सारा दध
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लसी ने पी लया था। शायद लसी नह ं चाहती थी क, बचा हआ दध म खद पऊ, म लसी क तरफ दखने लगा लसी
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मर चक थी। म ठगा- सा खड़ा था, मर आख नम थीं, म सोच रहा था क शायद लसी मरा एहसान नह ं लना चाहती
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थी जो मन े एक बार उसक ाण बचाया था और लसी ने अपने ाण दकर उस एहसान का बदला चका दया था। म
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सोच रहा था लसी ने यह या कया, तमने मर ाण बचाने क लए अपनी जान द द । लसी ने अपनी दो ती का फज
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अदा कर दया था। म चपचाप लसी को दख रहा था। उसक आख खल थी और उनस आस नकल रह थे, मर आख
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म आस कने का नाम नह ं ल रह थे, मर जहन म लसी क हर याद ताजा हो गयी थी। उसक यॉऊ- याऊ क
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आवाज मर कान म गंज रह थी। मन े भीगी आख स उस वदा कर दया। यह कहकर अगल बार हम फर मलग
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इस बार अब बस।
याम संदर
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‘’ अल वदा लसी ‘’
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म य वा ण य ल पक
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वा को-द-गामा
* चंचलता *
चंचल मन का अवरोध, तर ह कारण तभा को
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कह ं भावना का ह यारा तो नह ं? घर म ह कं ठत करती।
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आ दकाल भी सा य ह, ै त हार वेग-आवेग स, े
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चंचलता तर ह कारण , चराचर नतम तक ह।
मदला उर क ती को,
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नरजन कमार झा
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प वयोग ने पाषण वत क । जल क चंचलता स, े
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व र ठ माल गाड, कसलरॉक
धरणी कब आहत न हई??
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चंचलता वश पवनसत ने, वस धरा क चंचलता ने
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कस भा कर स ास कया ?? भक प न कर ख डहर क ।
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बोलो न साधरण मानव ,
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या कर और या न कर ?? चंचलता तम नर ह नह ं
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चंचलता क चौखट पर दव-दानव को भी परशान क ।
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होती उसक सामािजक तर कार। त ह नमन त हार जननी को
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सादर नमन!! पर !! तर बन
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सब कतहल भी नह ं ह न??
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िहदी ारा सारे भारत को एक स म िपरोया जा सकता ह। ै
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- वामी दयानद
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