Page 30 - VIDYALAYA MAGZINE 2017 - 18_KVSRC
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िहेज : नारी को श्राप




                 कौन िो तजम ओ सजक ज मारी,
                                                                            दौलत और दिे  की खानतर

                 बि रिी नहदयां के  जल में ?                               वपला हदया जल में ववष घोल !




                 कोई तो िोगा तेरा अपना,                                     दजननया रुपी इस उपवन में,

                 मानव ननशमुत इस भू में                                      छोटी सी एक कली थी मैं !



                 ककस घर की तजम बेटी िो,                                       जजस को माली समझा,
                                                                           उसी के  द्वारा छली थी मैं !
                 ककस क्यारी की कली िो तजम ?



                 ककसने तजमको छला िै बोलो,                                   इश्वर से अब न्याय मांगने,

                                                                                               ू
                 क्यों दजननया छोड़ चली िो तजम ?                              िव िैय्या पर पड़ी िाँ मैं !


                                                                           दिे  की लोभी इस संसार में,
                 ककसके  नाम की मेंिदी बोलो,
                                                                            दिे  की भेंट चढ़ी िाँ में !
                                                                                               ू
                 िांथो पर रची िै तेरे ?

                                                                                              ू
                                                                            दिे  की भेंट चढ़ी िाँ मैं !!
                 कवव की बाते सजनकर लड़की की


                 आत्मा बोलती िै...



                 कवव  राज मजझ को क्षमा करो,

                 गरीब वपता की बेटी िाँ !
                                        ज


                 इसशलये मृत मीन की भाजक्त,


                 जल धारा पर लेटी िाँ !
                                       ज


                 कं गन, चूड़ी, बबंदी, मेंिदी,

                 सजिागन मजझे बनाते िै !                                         नाम :  भवी पांड
                                                                                कक्षा : 02 कॉमसु
                 जीवन के  इस तन्िा पथ पर,

                 पनत के  संग चली थी मैं !
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                 पर वो ननकला सौदागर,

                 लगा हदया मेरा भी मोल !
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