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भाग्यिाली कौवा


                                         भाग्यिाली कौवा



               एक जंगल में अन्य पक्षक्षयों क े समूि क े



               साथ एक कौवा रिता था |वि िमेिा



               अन्य पक्षक्षयों का तरफ देखता और अफसोस


               करना की काि ! मै भी उन्िी  की तरि



               सजंदर िोता | मेरी अवाज भी उनकी तरि


               सजरीली िोती | आखखर भगवान ने मजझे इतना



               काला क्यों बनाया | हदन -रात वि इसी अफसोस



               मे पड़ा रिता |


               सदी क े हदन थे, सजबि-सजबि एक शिकारी आया उसने पेड़ो क े नीचे अपना जाल बबछा हदया

               था | वि सजंदर - सजंदर पक्षक्षयों को पकड़कर बाजार मेम बेचा करता था | यिी उसके  गजजर


               बसर करने का साधन था | उस हदन उसके  जाल मे बित सजंदर-सजंदर पक्षी फ ाँ स  गए और
                                                                       ज
               उनके  साथ वि कौवा भी फस गया| शिकारी आया उसने अपना जाल खोलकर सभी सजंदर

               सजंदर पक्षक्षयों को अपने एक बड़े थैले मेम रख हदया उसने कौए को मजक्त कर हदया | उसने


               सोचा इसे कौन खरीदेगा |


               अब कौए को समझ मेम आया, उसने भगवान को बित धन्यवाद हदया| उसने किा “िे
                                                                      ज

               भगवान मजझे अगले जन्म मे भी इसी तरि का काले कौए िी बनाना ताकक मै  आजाद रि


               सक ू  | एन सजंदर पक्षक्षयों क े जीवन मे ककतना खतरा िै | ”


               अत: िम जो भी िै जैसे भी िै और जो भी करते िै उस पर िमें गवु िोना चाहिए |



                                                                         नाम : अन्वेषा िालदार

                                                                         कक्षा : नयारवी कॉमसु


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