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"जब उस ने पाचवीं मुहर खोली, तो म� न वेदी
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के नीच उन लोगों के प्राणों को देखा िजन लोगों
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को परम�र के वचन और उसकी गवाही देन े
के कारण मार िदया गया था।"
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अ�ाह अकबर! िसफ ई�र
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मत डर, य�दा का शेर मा�र �रडल, मन� की भिमका महान है। इस शहर म� िकसी भी
मसीही को रहन की अनमित
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जयव� �आ है, और हम िनभा; हम इसी िदन इं�ड म� नहीं होगी।
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उसक साथ रह�ग – आज। परम�र की अनग्रह से इस प्रकार
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मोमबि�या जलाएग, जसा िक मुझे
िव�ास है िक िज�� कभी भी
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बझाया नहीं जाएगा।
कब तक, हे सव�श्रे� प्रभु, पिवत्र और
स�, कब तक तू पृ�ी के िनवािसयों का
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�ाय नहीं करेगा और हमार खून का
बदला नहीं लेगा? [1]
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जब तक त�ार मार जानवाल े
भाइयों की िगनती पूरी न हो
जाए, तब तक तुम को थोड़ी
देर और ठहरना चािहए।
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[1] पाचवीं मुहर संतों की प्राथनाओं की साम� और श�� का
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वण�न करती है �ोंिक वे परम�र से बदल की मांग करत ह�।
प्रकािशतवा� 6:9-11
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