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समाज म रोम - रोम 5बंधा %तनक पर सटकर
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'मg 'सम हआ कोर से बैठा
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Pवल!न शूSय म
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%तनक स
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अंधर! गुफा म मचा हड़कJप
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वह जीवन भर करती रह! Pवलाप आंधी और मेघ
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चेतना जात कहती ह
जो #मलता मुझे भी जीवन वहाँ बेव&त पहँची
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जहाँ रUग तान क> रत पर
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Dयि&त सJमान और सम िMट Lझल#मलाती 9करण थीं
मुझे भी #मलता
य1द सूय लोक उसी क सामने आyलाPवत समु\
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1हचक> - दर -1हचक>
मg गौरवािSवत होती 6ी होने पर जीवन मोती Pपरोता
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तमाम शhद औजार' ने काट
हई परािजत आ?मसंवाद पूछता - &य'
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9कस PवUध हई धूल 'मg '
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वह िजया पुनः पुन : कौन भीतर दुःख म धकलता ह
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मg मृत +ाय : एक लJबी सुरग खुलती जाती ह
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समाज क आईने म
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महज, दो Dयि&त हg साथ
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दस |वार जीवन पव म
9फर भी
रो कर उठtं ि 6य' स
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एक नह!ं,
मत पूछना
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दो - दस |वार स
वे कहाँ से आई हg ?
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वे रो कर लौटतीं ह
वे बताएंगी
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स1दय' पुरानी पराधीन सपनहँ सुख नाह!ं
युग-बोध क> कहानी
हम जो ढ ूंढने %नकले ह
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वह!, संसार म कहाँ बसा ह ?
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मई – जुलाई 94 लोक ह ता र