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त -Pव yत अंधर म मुझे भी #मलता जीवन
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9फर भी वीकाय नह!ं ह
मg हो गई हँ मौन
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Pपर रह!
तhध, समPप त
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धानी क संग
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अंधर म तुम 5बन
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जैसे कोnह का बैल
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बह उतरा
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&या पाता ह ?
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मांग से वह लाल रग
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थक कर झुक जाती ह
जैसे अ~ु लह
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Pववाइयाँ फट जाती ह
रोज़ाना Uगर रह! ह बूँद बूँद
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उमड़ पड़ा सागर
भव- भंवर
पKर$मा लगाते हए उतन बवंडर बन
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बुदबुदाती ह -"कब मुि&त #मलेगी "
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जैसे चू रहा हो मोम %नश 1दन
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ह अSनदाता !
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आँच झर रह! ह ब?ती स
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ह +भु !
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इतने फ ू ल Lखले &याKरय' म
बड़े Áामक शhद
ं
Vय' उगल! पर अं9कत
बैल क मुँह से उfचाKरत हए
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अब वह च&कर नह!ं लगाती ह
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पर एकदम जज र शाख
%तज ताक रह! ह
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दहल!ज़ पर खड़ी सोचती ह
चोखट पर कदम रखते ह!
अनेक उ?पीड़न क>
छSनी हआ Éदय
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अवधारणा क Pवषय म
कहाँ जाऊ ?
ँ
और 9फर कम ठ 1दन' का
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कौन िजJमदार ह
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1हसाब-9कताब करने लगती ह
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अशेष मृ?यु
#लखती ह दो और दो चार नह!ं
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बाईस वीं सद!
अकल! या6ा
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हर एक िMट मुझे ऐसे दखती ह
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जैस मg अपराUधनी हँ
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मई – जुलाई 93 लोक ह ता र