Page 7 - Vigyan Raatnakar June 2021
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   शि-शि िमि !
रवश्व भरि मे कोिोना महामािी िबाही मिेने अछि। ई अत्यंि दखु द गप अछि र्े एचह महामािीक दोसि लहि हमिा सभ सं ‘रवज्ान ित्ाकि’ कोि िीमक दू िा सदस्य सव्जश्ी पी.एन. मसंह आ अशोक रप्यदशजी कें िीन लेलक। ओ दनु ू गोिे आइ हमिा सभक बीि सशिीि नचह िछथ, मुदा रविाि रूप मे ओ सदवै हमिा सभक मध्य उपस्थिि िहिाह। ‘रवज्ान ित्ाकि’ पचरिका रदस सं दनु ू रदवंगि
सु मीकियाकमजीक प्रि भावभीनी श्दांर्मल।
प्रछसधि संच्रविि श्री पी.एन. छसंह जीक 15 मई 2021 कें टीिी ध्र्ि्वहक कें उंच्ई प्र्प्त भेल। ‘प्हुन’, ‘म्स्र स्हेब’, अस्मवरक िेह्ंत भए गेलवन। ओ िस विन धरर एम्स, झज्जर ‘आब कह मोन के हेन लगैर’ आवि टीिी शो के र प्रस्रण भेल। श्री
मे कोरोन् मह्म्री सं संघरया करैत रहल्ह। ओ 62 बरखक छसंह स्वहत्रक्र रूप मे सेहो सम्दृत िल्ह। विशेर रूप सं कवि आ
 िल्ह। क्लक रिू र वनरवत िेछखरौ जे च्रर विन पवहने हुनक एकम्त्र पुत्र आल्पक सेहो एवह मह्म्रीक चलते वनधन भए गेल िल। हुनक पररि्र मे हुनक पत्ी, पुतहु आ सि् बरखक पोती अछि।
समीक्क रूप मे। ह्लवह मे श्री पी.एन. छसंह द््र् वहंिी मे छलछखत एकट् पुस्तक-समीक्् आलेख प़िने िलहुं। हुनकर स्वहत्र प्रवतभ् सं चमत्कृ त भेल रही। ओवह समीक््क पवहल पैर् िल- ‘’र्िें होती
श्री पी.एन. छसंह! एवह न्म सं ओ लोकवप्रर िल्ह, मिु ्
हुनक परू ् न्म िल श्री परुु रोत्तम न्र्रण छसंह। ओ बहुमखु ी
प्रवतभ्क धनी व्रस्क्त िल्ह। संच्रविि, कल्क्र, न्टकक्र,
सं गीतक्र आ स्वहत्रक्र। ओ प्रभ्िश्ली एं कररगं करैत िल्ह।
परू ् समर हुनकर रचन्त्मक क्ज मे बीततै िल। व्र्िह्ररक
रूप सं सहे ो ओ सहज-सरल िल्ह। अत्यंत वमलनस्र आ मिृ भु ्री। श्री छसंह मलू त: मधबु नी छजल्क छसमरी, र्जनगर (मधबु नी)क रहवनह्र िल्ह। लगभग तीन िशक धरर ओ िरू िशनया मे क्ररया त िल्ह। एतए ओ अप्र खर्वत अछजतया कएलवन। डीडी चनै ल हेड भले ्ह। डीडी नशे नल, डीडी मटे ट्रो, डीडी भ्रती मे िररष्ठ प्रबंधन पि पर आसीन भले ्ह। डीडी म्कगे वटगं के र ि्वरत्िक वनिहया न कएलवन। हुनक समर मे डीडी म्कगेवटगं मेअपिू यार्जस्ििवृधिभले िल।पटन्आर्चं ीिरूिशनया केन्द्रकें सगु वठत करए मे हुनक महत्िपणू या रोगि्न रहलवन। ओ अनके टीिी क्ररिया मक वनम्णया कएलवन। िू स्ल पवहने ओ वबह्र िरू िशनया सं सिे ्वनित्ृ त भले िल्ह।
श्री पी.एन. छसंह कें वमछथल्-मैछथली सं बड्ड लग्ि िल। िरू िशयान केंद्र, पटन्क वनिेशक रूप मे ओ मैछथली मीवडर् कें सशक्त कएलवन। हुनकवह समर मे मैछथली
िररष्ठ पत्रक्र श्री अशोक वप्ररिशजी 4 मई 2021 कें नवह रहल्ह। कोरोन् संरिमण चलते ओ हमर् सभ सं वबिुव़ि गेल्ह। श्री वप्ररिशजी मूलत: घ्टभटर्, मधुबनी (वबह्र)
क वनि्सी िल्ह। हुनकर वपत्जी स्ेट बैंक ऑफ इंवडर् मे क्रयारत िल्ह। स्थ्न्ंतरण रिम मे ओ सभ ग्जीपुर, सैिपुर (बन्रस)
क वनि्सी भेल्ह। श्री वप्ररिशजी छसविल इंजीवनरररगं क छशक्् प्र्प्त कएने िल्ह। तत्चि्त् पटन् मे रवह कए बीए, एमए, बीएड, एमएड के र वडग्ी ह्छसल कएलवन। हुनकर व्रस्क्तत्ि सरल िल। ओ मृिु स्भ्िक धनी िल्ह। व्रस्क्तगत र्गद्ेर सं कोसो िरू । सभक सुख- ि:ुख मे श्वमल होइत िल्ह। एवह चलते हुनकर संपकयाक पररछध व्य्पक िल। सभ हुनकर प्रशंस् करैत िल।
हैं पत्थर के छशल्लेख की तरह...इवतह्स से लेकर भविष्य तक मौजूि रहने ि्ली...पेश्नी पर छखंच आरी रेख्ओं की तरह कभी न वमटने ि्ली! र्िें होती हैं पतझ़ि में धरती पर वबिे पत्तों पर पगध्ववन की तरह...चरया-मरया की ध्ववन के स्थ हमेश् पीि् करने ि्ली! र्िें होती हैं प््सी धरती पर ब्ररश की पहली फु ह्र की
तरह...छजसकी सोधं ी गंध को इत्र की ख़्ली शीशी में बंि कर रखने क् जी करे! र्िें होती हैं आक्श में चमकते ध्िु त्रे की तरह...छजसमें वकसी अपने क् अक् नज़र आए, और हर शब उसे वनह्रने क् जी करे! र्िें होती हैं उस विरे की लौ की तरह...छजसे बुझ्ने क् हौसल् वकसी तूफ्न में भी नही!ं र्िें होती हैं उस प्र्थयान् की तरह...छजसे अस्ीक्र करने की वहम्त भगि्न में भी नही!ं’’
श्री छसंह अछखल भ्रतीर सिया भ्र् स्वहत्य समन्र सवमवत सं जुव़ि कए
सं गठन्त्मक स्तर पर सेहो सवरिर िल्ह। निोवित स्वहत्रक्र कें प्रोत्स्हन
आ म्गयािशयान करैत िल्ह। श्री पी.एन. छसंह वनरंतर सृजन्त्मक क्ज मे जुटल रहल्ह। कम उमरर मे ओ ततेक क्ज कएलवन जे लोग अपन लंब् उमरर मे नवह कए प्बैत अछि।
आि्ज उठेलवन। कोरोन् क्ल मे पत्रक्रक सुरक्् लेल छचंवतत िल्ह। हुनकर ट्ीटक गंभीरत् िेखल ज्ए, ‘’कोविड मह्म्री सं स्तंत्र लेखक, पत्रक्र, कल्क्रक ह्लत के हन अछि, एवह पर कोनहु सरक्र नवह सोचलक। एखनो समर अछि, कें द्र आ र्ज्य सरक्र हुनक् लेल िस हज्र ट्क् महीन्क प्र्िध्न करए तं आसम्न नवह टूट प़ितै।‘’
ओ जतए सरक्र पर प्रश्न ठ़्ि करैत िल्ह, ओतए आम जन कें सेहो ि्वरत्वबोध लेल ज्गृत करैत िल्ह, ‘’हम िि् ब्ैक कए रहल
िी। ऑक्ीजन ब्ैक कए रहल िी। प््ज्म् ब्ैक कए रहल िी। बेड ब्ैक कए रहल िी। जतए अिसर भेट रहल अछि, मरीजक पररजन कें लूवट रहल िी आ िोर सरक्र कें िए रहल िी। ि्स्ति मे,
पी.एि.मसंह
पूव्ज ननदशे क, दिू दश्जन, पिना
     श्री वप्ररिशजी सही म्रने मे पत्रक्र िल्ह। कमयाठ आ जुझ्रू। सवरिर पत्रक्ररत् मे अपन ख्स पहच्न बनेने िल्ह। अपन प्रखर आलोचन्त्मक दृवष् सं समस्मवरक मुद्् पर वटप्पणी करैत िल्ह। ओ अनेक प्रवतवष्त मीवडर् संथि्न मे क्ज कएने िल्ह। िैवनक भ्स्र, इंवडर् न्यूज मे विछभन्न संप्िकीर पि पर ि्वरत्व वनभेलवन। प्ररुवति अख़ब्र मे फीचर संप्िक पि कें सुशोछभत कएलवन। ओ एकपक्ीर पत्रक्र नवह िल्ह। कोनो ख्स विच्रध्र् सं जु़ि्ि नवह। विविध विच्रध्र्क लोग सं हुनकर संबंध सघन िल। िेशवहत आ सम्जवहत सं कोनो समझौत् नवह करैत िल्ह। अपन लेखनी मे र्जनीवतक विद्रपरू त् आ नक्लि्ि, मजहबी आतंकि्ि पर खूब प्रह्र करैत िल्ह।
सं गठनकु शलत् िल हुनक् मे। ओ पत्रक्रवहत मे खूब सवरिर िल्ह। विल्ी पत्रक्र संघक अनेक पि पर वनि्याछचत भेल्ह। ब्ि मे संघक सछचि पि कें सेहो सुशोछभत कएलवन। पत्रक्रवहत मे मुखर रहैत िल्ह। पत्रक्र सुरक्् क्नून लेल
आपि् मे अिसर सरक्रे नवह, हम भ्रतीर सेहो ़िंू़िैत िी।‘’
श्री अशोक वप्ररिशजी कें अपन संस्ृवत सं अत्यंत प्रेम िल। ओ वमछथल्-मैछथली
आंिोलन मे भ्गीि्री करैत िल्ह। एवह क्ेत्रक उत्थ्न लेल प्रर्सरत िल्ह। मैछथल पत्रक्र समूह आ मैछथली स्वहत्य मह्सभ् सं सेहो जु़िल िल्ह। विद््पवत स्मृवत पिया आ विच्र-गोष्ी मे भ्ग लैत िल्ह। कोरोन् मह्म्री म्िे मैछथली मे ट्ीट करैत ओ मैछथलजन कें स्िध्न कएने िल्ह, ‘’वमछथल्मे भोज जरूरी िै। मजबूरी सेहो िै मुि्, भोज नै ख्रब त’ मरर नै ज्रब। म्स्े लग् क’ चुम्ओन विरौ आ घरक र्स्त्, न्पू। पररि्र मे वकरो ब्हर सं आबछथ एक सप्त्ह लेल
घरमे क््रंटीन करू। आबर िल् समर भर्िह संकेत क’ रहल अछि। जह्ं-तह्ं सं बीम्री और मृत्यु के सम्च्र आवब रहल अछि। स्िध्न!’’ मुि्, विछधक विध्न िेछखरौ। इएह कोरोन् मह्म्री श्री अशोक वप्ररिशजी कें हमर् सभ सं िीन लेलक। एकट् प्रखर पत्रक्र, पत्रक्र नेत्, वमछथल् अछभर्नी आ संिेिनशील व्यवति रूप मे हुनकर रोगि्न अविस्मरणीर रहत।
– संजीि ससन्ञा
अशोकररियदशजी
वरिष्ठपरिकाि
   






























































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