Page 5 - Vigyan Raatnakar June 2021
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वनस्परि र्गि
िहबञाक अथि नििोग,
ि’ पीबू गुिीच
सुभाष चन्द्र
हेहमर् कमजोरी बुझ् रहल अछि। ििया सं गत्र-गत्र टूटल ज् रहल अछि। कहीं बोख्र त’ नवह हैत?’ “अउ जी, ज्उ जल्दी आ गुरीचक सेिन शरूु करू। सब िखु ििया िरू
भ’ जैत।”
ई गप्प सद्ः एखन ग्म-घर मे सुनब् मे आवब
जैत। वकनको वनरोग रहब्क हुअर ि् वनरोग करब्क हुअर, लोक गुरीच के र सेिनक सल्ह
िैत िछथ। गुरीच र्नी वगलोर। वगलोर कें अमृत् सेहो कहल गेल अछि। कोरोन् क्ल मे वगलोर त’ ग्म-घर सं ल’ क’ शहर मे अपन उपरोवगत् छसधि क’ चुकल अछि। कहल ज्इत अछि जे नीम पर च़िल गुरीच सभसं ल्भक्री होइत अछि। एवह तरहें नीमक औरधीर गुण गुरीच मे आवब ज्इत िैक, जेन् सं गवत के र असरर। 21म सिी कें 21म स्ल मे वगलोरक सेिन करर ि्ल् कोनो आन आरुिगेविक िनस्पवतक सेिन करर ि्ल् सं 20 नवह 21 िछथ।
बूझल अछि जे वगलोरक िैज््वनके ट् नवह, बस्ल्क ऐवतह्छसक प्रम्ण सेहो िैक। प्र्चीन भ्रत के मह्न रणनीवतक्र-अथयाश्स्ती आच्रया च्णक्य अपन् संगे एकट् िंड ल’ क’ चलैत िल्ह। कहल ज्इत अछि आच्रया च्णक्य अपन िंड मे गुरीच नुक् क’ र्खैत िल्ह, ज्वह सं कोनो संकट क्ल मे प्र्णरक््थया उपरोग कएल ज्ए। आरुिगेिक संवहत् मे िण्ड कें भर िोहन करर ि्ल् सेहो बत्ओल
गेल अछि। (सु.छच. 24.78, च.सू.5.102) भरघ्ं िण्डध्रणम्। आच्रया च्णक्य के र म्न्यत् रहवन जे औरछध मे गुरीच सियाश्रेष् अछि। (बृ.च्.9.4): सिवौ- रधीन्ं अमृत् प्रध्न्। गुरीच कें आब-ए-हर्त सेहो कहल गेल अछि।
आरुिगेि सं वहत्क अनुस्रे गप्प कएल ज्र
त’ उम्र कें रोकर ि्ल् िरःथि्पक द्रव्य मे गुरीच श्वमल अछि। एवह िगयाक अन्य प्रज्वत मे हरीतकी, आंिल्, र्स््, अपर्छजत्, जीिन्ी, अवतरस् शत्िरी, मंडूकपणजी, श्लपणजी आ पुननयाि् अछि। (च.सू.4.18)रू अमृत्ऽभर्ध्त्रीमुति्श्वेत्जीिन्त्य- वतरस्मण्डूकपणजीस्थिर्पुननयाि् इवत िशेम्वन िरः- थि्पन्वन भिस्न्।
आच्रया भ्िवमश्र स्पष् के ने िछथ जे (भ्.प्र.पू.ख. गुडुच््वििगया 6.8-10) गुडूची कटुक् वतति् स््िपु ्क् रस्रनी। सं ग््वहणी कर्रोष््
लघ्ी बल््ऽवनििीवपनी।। िोर त्रर्मतृड््हमेहक्स्ंचि प्ण्डुत्म्। क्मल् कु ष्ि्त्स्तज्रवरिवमिमीन्रेत।। प्रमेहश्व्सक्स्शयाः कृ च्ट्र हृद्रोगि्तनुत् ।
आरुर मं त्र्लर के र प्रो (िैद्) के एस धीम्न कहैत िछथ, वगलोर के र प्त प्नक प्त जक्ं होइत अछि। एकर प्त मे कै स्शिरम, प्रोटीन, फॉस्ोरस पर्याप्त म्त्र् मे उपलब्ध रहैत अछि। एकर अल्ि् एकर डंठल जकर् तन् कवह सकै त िी, ओवह मे भरपूर म्त्र् मे स््चया होइत िैक। वगलोर एकट् बेहतरीन प्िर वडट्रंक म्नल ज्इत अछि, जे इम्यून छसस्म कें बूस् करब्क संगे-संग कतेको र्स खत- रन्क रोग सं लोकक जीिनक सुरक्् करैत अछि। मेट्बॉछलज्म छसस्म, बोख्र, ख्ंसी, जुक्म आ गैस्ट्रोइंटसट्इनल समस्् के र अल्ि् सेहो आन रोग-व्य्छध मे ई अह्ंक रक्् करैत अछि। वकिु लोक कें सुनब् मे आचिरया ल्वग सकै त िछन्, मुि् ई सच अछि जे विज््न जगत के पैघ-पैघ मह्रथी सेहो वगलोरक प्त कें एकट् बेहतरीन आरुिगेविक उपच्र म्नैत िछथ।
असल मे, आरुिगेिक सं वहत् सभमे 178 जी-
कहल र्ाइि अछि र्े आिाय्ज िाणक्यअपनसगं मेगिु ीिनकु ा क’िाखिै िलाह,र्ाचहसंकोनो सकं िकालमेप्ाणिक्ाथ्जउपयोग कएल र्ाए।
िनि्री रोग अछि, ज्वह मे गुरीच कें प्रमुखत् सं उपरोग कएल ज् रहल अछि। एकर वमश्रण ि्ल् रौवगक सं ट्इफ्इड, नियास छसस्म रोग, सभ तरहक टॉस्क्क आ सेवटिक बोख्र, ि्त, वपत्त आ कफ, ज्र, रतिस््ि, गवठर्, ग्उट, मेवटज्म सनक बोख्र, ज्वह मे रति स््िक सं भ्िन् रहैि, ठीक भ’ ज्इत अछि। उल्ी, जलन, ि्ह, मोट्प्, अम्ल आ वपत्त ब़िब्क क्रणे कतेको आन समस्् उत्न्न होइत अछि। चम़िी के अनेक तरहक रोग, अलसर, शोथ, मलेररर्, रूररनरी टैट्रक्ट सं जु़िल रोग, फ्इलेररर्छसस, एंज्इन् आ ि्त शूल, वपत्तश्ेस्मिक ज्र, िृष्य ि् ि्जीकरण, आंछखर
आ आंछख सं जु़िल कतेको व्य्छध, बौवधिक क्मत् ब़ि्रब, वफस्ुल् सवहत गुि् के तम्म रोग, अनेक प्रक्रक कु ष्, जॉछडिस, र्इन्इवटस, स्इनस, स्प्ीन ब़िब, जो़िक ििया, ट्यूमर, एनीवमर्, बल- िृवधि, मनोविभ्रम के र स्थिवत ठीक करब सन िजयानों समस्् मे क्रगर अछि।
एखन कोरोन् क्ल अछि। पछिल् बरख सं म्नि ज्वत एवह सं जूछझ रहल अछि। एवह मे गुरीच सभसं बेसी चलन मे आरल। कतेको आरु- िवेंविक कं पनी एकर रस बोतलबं ि क’ बेछच रहल िछथ। लोकक ब्री-झ्डी सं गुरीच आब बहुमंछज- ल् मक्नक गमल् धरर थि्न प्वब रहल अछि। असल में, आरुिगेिक एंटीि्ररल औरछध, ज्वह मे गुरीच सेहो श्वमल अछि, एकर् पर इन ि्इिो, इन विटट्रो आ स्क्वनकल अध्यरन भ’ चुकल अछि। एवह अध्यरनक वनष्करया मे कहल गेल अछि जे कतेको तरहक ि्ररल रोग सं बचेब् मे ई बड क्रगर अछि।
ओन् ई नवह कहल ज् सकै त अछि जे वमछथल्मे एकम्त्र गुरीचे ट् चमत््री औरछध अछि। वमछथल्क भूवम मे एक सं बवढ कर एक
आरुिगेविक औरछध अपन चमत््री असर िेख् रहल अछि। क्लमेघ, छचर्रत्, तुलसी,
शं ुठी, ि्स्, छशग्ू ि् सहजन, क्ली- वमचया, वपप्पली, गुडूची, हररद्र्, रवष्मधु,
वबभीतकी, आमलकी, अश्वगंध्, हरीतकी, मुस्त्, प्ठ्, पुननयाि्, लहसुन, शरपुन््,
कु टज, शल्की, रुपुिीन्, रुवत्रकटु, रुवत्रफल् आवि शोध मे सहो एंटीि्- ररल छसधि भ’ चुकल अछि।
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