Page 58 - e-magazine-Diya Academy of learning
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ज िंदगी                                                      “ चुटक ु ले ”

                                                                 संता के ले खर दने गया -
             न िादर बड़ी कीस्जये ,
             न ख़्िाहिशें दफ़न                                          संता- भाई 1 के ला लेना िो तो ककतने का मिलेगा ??
                                                                      के लेिाला- 10  रुपए का……
             कीस्जये,
                                                                      संता-अरे ! 4 रुपए िें दे दे......
             िार हदन की स्जंदगी िैं ,
                                                                      के लेिाला- 4 रुपए िें तो नछलका दूूँगा तुझे ….…
             बस िैन से बसर कीस्जये .........
                                                                      संता- ये ले 6  रुपए , और मसफा  के ला दे दे ,

                                                                       नछलका तू रख ले |
             न परेशान ककसी को कीस्जये ,

             न िैरान ककसी को कीस्जये ,
                                                                    एक यात्री ट्रेन से उतरा ,उसने संता से पूछा -
             कोई लाख गलत भी बोले,
                                                                             “यि कौनसा स्टेशन िै ?”
             बस िुस्क ु राकर छोड़ द स्जये …......
                                                                              िंसा और जोर से िंसा ,जोर से िसते -िसते

                                                                   लोट-पोट िो गया......
             न ऱूठा ककसी से कीस्जये ,
                                                                       और बड़ी िुस्श्कल से उठकर बोला-
             न झूठा िादा ककसी से कीस्जये ,
                                                                       “अरे ! ये रेलिे स्टेशन िै| ”
             क ु छ फ ु रसत क े पल ननकामलये ,

             कभी ख़ुद से भी मिला कीस्जये …......
                                                                 एक आदिी स्क ू टर पर बैठ कर  वपक्िर िाल क े सािने

                                                                    संता से पूछ पड़ा -
             पररंदे रुक ित तुझिे जान बाकी िैं ,
                                                                    आदिी -भाईसािब ,स्क ू टर स्टैंड किाूँ िै ?
             िंस्जल दूर िैं बित उड़ान बाकी िैं,
                          ु
                                                                    संता - भाईसािब ,पिले अपना नाि बताइए |
             यूूँ ि  नि ं मिलती रब की िेिरबानी,
                                                                    आदिी -रिेश
             िर एक इस्ततिान बाकी िैं ,
                                                                    संता - आपके  िाता-वपता क्या करते िै ?
             स्जंदगी की जंग िें िौसला तूफानी ,
                                                                   आदिी -क्यों ? िैसे भाईसािब िे लेट िो जाऊूँ गा और
             जीतने क े मलए सारा जिान बाकी िै …......
                                                             वपक्िर शुऱू िो जाएगी |
                                         ऋवषप्रकाश
                                                                    संता - तो जल्द  बताओ |
                                                                    आदिी -िेर  िाूँ एक डॉक्टर िै और पापा इंजीननयर िै |
                          म ाँ
                                                             अब बता द स्जए ?
             सूरज से पिले उठती िैं िाूँ ,
                                                                    संता -आणखर  सिाल ,तुि पढ़े-मलखे िो |
             ििको सुलाने क े बाद सोती िैं िाूँ |
                                                                    आदिी- जी िाूँ ! िैं एि.बी.अ कर रिा िूँ ! अब बताइए
                                                                                                 ू
             सबका काि करती िाूँ ,
                                                             जल्द  से |
             अपना काि भूल जाती िैं िाूँ |
                                                                   संता -भाईसािब आप इतने पढ़े-मलखे िोकर भी यि नि ं
             गलती पर डाूँट लगाती िैं िाूँ ,
                                                                   जानते ,की स्टैंड          स्क ू टर क े नीिे िोता िैं |
             कफर प्यार से सिलाती िैं िाूँ |

             िोते जब िि बीिार ििको ,
                                                                 सरदार का सर फट गया |
             डाूँट क्र दिा णखलाती िाूँ |
                                                                      डॉक्टर -ये कै से िआ ?
                                                                                ु
             जब िि लाते नंबर कि ,
                                                                      सरदार -िैं ईंट से पत्थर तोड़ रिा था |
             प्यार से सिझाती िाूँ |
                                                                     “एक आदिी ने िुझसे किा, “कभी खोपड़ी का इस्तेिाल
             जब िि लाते साथ इनाि ,सबसे खुश िोती िैं िाूँ ,
                                                             भी कर मलया कर”|
             खाना पिले ििे णखलाती ,बाद िें खुद िैं खाती िैं िाूँ |

             ऐसी िोती िैं िि सबकी िाूँ |
                                                                                                    अथवि दीक्षक्षत
             ऐसी िोती िैं िि सबकी िाूँ |
                                                                                                     कक्ष  :- आठ
                                          हपषित  , कक्ष  :- आठ
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