Page 2 - माँ की पर्णकुटी
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ार भ क  सम याय  एवम उनका समाधान-  ार भ म  ब चे पढना नह ं जानते थे ,  क ू ल भी नह ं जाते थे,























                                         मे डकल क   प (हो मयोपैथी )                       भारतमाता पूजन (अखंड भारत )

        आपस म  गा लयाँ देते थे, माता- पता व अ य प रजन  का आदर भी नह ं करते थे तथा पानी क   यव था नह ं होने के
        कारण साफ-सफाई से भी नह ं रहते थे I ब च  के  खेलते एवं कचरा बीनते समय चोट लगने, बीमार होने आ द का भी
        अ धकांश माँ-बाप  यान नह ं रखते थे I ब तीवासी  भी  अनेक  यसन  से   त थे I
             कचरा  बीनने  को  ह  िजंदगी  क    नय त  मानने वाले   मे डकल क   प (EYE)

        ब च  ने,  ार भ म  पढने म    च ना ल  । प रजन घर का

        काय  कराने हेतु, ब च  को  "माँ  क पण क ु ट " से उठाकर ले
        जाते  थे  I  सीमाजी  ने  हार  नह ं  मानी  I  आप  ब च   को

        अपनापन व मातृ नेह से अपनी और आक ष त करने लगी I

        ब च  को पढ़ाने एवं सं का रत करने के  साथ-साथ,   वयं
        को ह न समझने वाले ब तीवा सय  को मन से गले लगाने

        लगीं  व  उनका  इलाज  अपने  हाथ   से  करने  लगीं  I  उनक
        झोप डय  म  बैठकर चाय पीने व भोजन करने लगीं । क ु छ समय बाद ह  भाग दौड़ कर इस ब ती म  पीने के  पानी क

         यव था कराई, राशन काड  बनवाये तथा मे डकल कै  प लगाये । सभी  सामािजक, रा   य एवं धा म क पव  ब तीवा सय


















                                                 आंबेडकर जयंती                                         ववेकानंद जयंती

        के  साथ ब ती म  ह  धूमधाम से मानाने लगीं । इस सभी का यह सुखद  णाम  नकला  क क ु छ समय बाद ह  आपने

        पूर  ब ती  नवा सय  के   दल म  एक खास जगह बना ल  और उनका का  व वास हा सल कर  लया I
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