Page 1 - माँ की पर्णकुटी
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नर सेवा- नारायण सेवा (Service of humanity-Service of God)
                                                   माँ क  पण क ु ट


        भौगो लक  ि थ त-  जयपुर  महानगर  के    श ा  पथ  मानसरोवर  म   गाय ीनगर   व तार  के   पीछे  अमानीशाह  नाला
                                                                 (वत मान म    यवती नद  ) के   कनारे ि थत वा मी क

                                                                 क ची ब ती के  म य "माँ क  पण क ु ट " ि थत है I यह

                                                                 वा मी क समाज क , लगभग 110 झोप ड़य  क  क ची
                                                                 ब ती है । एक ईसाई  मशनर  इस ब ती म  दोपहर म

                                                                 आकर ब च  को खाना बॉ ं टकर चल  जाती थी । उ ह ने
                                                                 ब च   क   ‘ईसु  क     जय’  बोलना  व  ईसु  के   लॉके ट

                                                                 पहनने   सखा   दया  था  I  7-8  साल  से  काय रत  वो
                                                                 ईसाई   मशनर ,  क ु छ  वष   बाद  ब ती  का  धमा तरण

                                                                 करने म  कामयाब हो जाती I




                        वष  2012 म  "माँ क  पण क ु ट " 1

        ब तीवा सय  का जीवन यापन- इस ब ती क
        अ धकांश  म हलाय ,  पु ष  व  ब च ,  सूरज  क   पहल

         करण  के   साथ  ह   कचरा  बीनने   नकल  जाते  ह   ।
        िजन  अयो य  एवं  उपयोग  क   हई  व तुओं  को  हम
                                      ु
        कचरा  बना  फ  क  देते  ह ,  उससे  इनका  जीवन  यापन

        होता है । शाम तक ये लोग बड़ी- बड़ी  लाि टक क
        थै लय  म  कचरा इक ठा कर लाते ह , उसे छॉट कर
        अलग-अलग कर बजार म  बेचकर जीवन यापन करते
        है । क ु छ प रवार सफाई कम  भी ह  I

         थापना  कब  और  कै से-  संघ   ेरणा  से  अ ैल


                                                                                 वष  2012 म  "माँ क  पण क ु ट " 2

                                                                    2012 म , अजयजी व  खरजी  ने ब ती  म  पढ़ाने
                                                                    जाना  ा भ  कया ।  खरजी ने घर आकर अपनी
                                                                    "माँ" (सीमाजी)  को  बताया  क  वहाँ  पर  बहत  सारे
                                                                                                           ु
                                                                    छोटे-छोटे ब चे  ह   I  बचपन  से ह   ब च  से   यार
                                                                    होने के  कारण, आपने  अगले ह   दन से अजयजी
                                                                    के   साथ  ब ती  म   जाना  आर भ  कर   दया,  जो
                                                                     सल सला आज तक अनवरत  प से जार  है I


                                         वष  2013 म   "माँ क  पण क ु ट "
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