Page 11 - TSB ebook
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की उपद्धस्थजत की वजह से लड़के  भरसक शालीन बने रहने की कभी कामयाब और कभी नाकामयाब
               कोजशश करते थे। पर कभी न कभी शालीनता का यह ओढा हुआ लबादा उतर भी जाता था। खासकर तब
               जब दाऱू चढी हो।

               कहते हैं ट्ाइम फ्लाइज। पता ही नहीीं चला कब हम में से कई दादा और नाना भी बन गए। जिर भी हम सभी
               जवाींजदल हैं और मरते दम तक रहेंगे। हमारे जदलोीं में उमींग बरकरार है। इसका उदाहरण है ट्ीएसबी की
               अजवस्मरणीय सिलता। थैंि ट् ू पीएमजी जजन्होींने इसे साकार जकया। ट्ीएसबी ने मद्धिम पड़ती रोशनी की
               लौ में एक ऐसी ऊजाि भरी मानोीं जीवन साथिक हो गया।


               जिलहाल इतना ही ..और जिर कभी।

               जचींतन भारद्वाज




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