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मेरी पहला प्यार
मेरी पहला प्यार
बित छोटी सी थी जब िआ मजझे उनसे प्रेम था |
ज
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फ ज दकती, क ज दकती, खेलाती, सताती, परंतज प्रेम उनका अनेक था |
जन्मों – जनम से प्यार तजम्िारा अनमोल सा किलाता िै,
पर आज वक्त ने समझा हदया िै किााँ तजम और किााँ मै |
जब - जब मजझको कभी भी आंच थी आती,
दजननया जग को छोड़ कर वि मजझको गले लगाती आईने
मे जब कभी भी खजदकों िाँ मै ननिारती,
ू
उनका प्रेम, उनका भाव, उनको स्वयं मे पाती |
िाथ मे कलम, छाती मेम पिचान शलए उनसे मै दूर ि |
ज
पजस्तक, कलम, बृक्ष , नभ, सब मे हदखाता उनका मजंि िाँ |
ू
उनकी प्रेम की छाया मेम बीती मेरी पूरी जवानी,
दूर िोकर याद िै आती िर अच्छी – बजरी किानी |
ववायालय से घर आते िी, प्यार परोसा करती थी वि|
किती थी मै पारी िाँ उनकी ,लाखो मेम ,िजारों मे या िो सौ
ू
हदन ढल गई रात आ गया ,यिी मेरी अनमोल किानी िै,
मोि ,माया और काया मेम लपेटकर रखने वाली,
और कोई नािी ,बलकी मेरी मााँ िैं |
नामे : िजभांगी रॉय
कक्षा ; 02 कॉमसु
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