Page 50 - karmyogi
P. 50

किल ितत्व
                                                     े
                                                         ृ
                                        ु
                                                   े
                                   क्षर्ता क धिी,
                                                           े
                                            े
                             हृदय ि कर रि िैं
                       आि भी इिकी आराधिा।


                                                                       े
                                               े
                           चगरधारी क स्वप्ि तल,
                      ज्ञाि वक्ष की छि - छाया र्ें
                                   ृ

                                                              े
                                ककति छाि पल।
                                            े
                                प्रगनत का इनतिाि


                                                े
                             वतमर्ाि क सिखर को

                                       छ रिा ि,
                                                        ै
                                         ू
                                               े
                                             दखो!

                       भपवपय की िंभाविाओं का,

                                                                                   ै
              ककतिा स्वखणमर् अरुणोदय िो रिा ि।
   45   46   47   48   49   50   51   52