Page 27 - AUGUST 2020HTML
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त्वचार ...
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अगर “अंत्तम मच” म रन नहीं िटोर तो नट-प्रत््टस
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अिहरीन हो जातरी ह – डॉ. त्नमल जन
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“पापा! यहॉं की सुबह से शाम तक की भागदौड़ भरी क़िंदगी रोना रोत हुए आतमा क सरभार िम्व को करसमृत कर कदया जाए? ऐसे
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में बस घर से कनकलत-कनकलत भगरान कर कया हम जीरन का रासतकरक आनंद उठा पायगे?एक िम्व ऐसा
को हाथ जोड़ कर औपचाररकता पूरी करन भी है कजसमे समय प्रतीक, उपकरण चाकहए ही नहीं। रह है गुणातमक
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का ही समय कमल पाता है। पूजा-पाठ न कर िम्व। कजस का पालन हर ककया जा सकता है। िम्व का समरण करत े
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पान का एक अपराि-बोि बना रहता है। ही हमार अंदर जो करनय, सरलता, पकरत्ता, नम्रता, कृतज्ञता, करुणा,
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यह पीड़ा है अमेररका की सथायी कनरासी उदारता क भार उतपनन होत हैं, यह आतमा क गुण ही गुणातमक िम्व
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-डॉ कनम्वल जैन मेरी पुत्ी की। पाश्ातय देशों में घरलू सेरक है। कजनहे हम कहीं भी, कभी भी, कबना कोई अकतररति सािन जुटाए
(से.कन.जज) रखना अपराद सररूप है। घर क सार िारण कर िम्व की प्रभारना कर सकत हैं।
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कामकाज खुद ही करन होत हैं। इस कलए श्ीचरणों में श्दा सुमन अकप्वत नहीं कर पा रहे हैं तो
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वयसतता अकिक रहती है। आज पीढ़ी को एक ऐसी िाकम्वक आसथा ककसी उदास चेहर को अपनी मुसकान से फ ू लों की तरह कखला सकत े
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की तलाश है, जो उसक दौड़त-भागत जीरन क साथ कदम-ताल कर हैं। देरदश्वन क समय जो करनय और सरलता हम में होती है उसी
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सक। अगर युरा रग्व को बदलत मू्यों क साथ चलन राली िाकम्वक करनय और सरलता से माता-कपता, गुरुजन क साथ वयरहार भी िम्व
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आसथा नहीं देंगे तो इसका दोर युरा रग्व पर नहीं हम पर होगा? हर ही करना है। अपन से छोटों से बात करत समय सौजनयता बरतन े
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काल का युरा रग्व जीरन में क ु छ नयापन चाहता है।
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में अकिक समय की ़िरुरत कहॉं है। ककसी न हमार कलए तकनक
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िम्व ककयातमक एरं गुणातमक होता हैं। हमार जीरन में भी ककया तो उसक प्रकत कृतज्ञता प्रकट करना हमार वयकतितर को
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ककयातमक िम्व तो हैं लककन गुणातमक िम्व की कमी है। हमार अंदर और कनखार ही देगा। वयापार में ग्राहक से नीकत-परक राता करन में
जब तक दया, करुणा नही आएगी और पाप नहीं छूटगा तब तक हमारी गुडकरल ही बढ़ती है। काय-सथल में सहककम्वयों से उदारता पूण्व
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हमार पूजन करन से कोई फायदा नहीं। भगरान की पूजन करन से वयरहार राताररण में सौमयता और काय-क ु शलता में रृकद करता है।
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हमार जीरन से पाखंड कमटना चाकहए।- क ुं थुसागर जी भगरान, संपकत्त छोड़न से नहीं अपन होत। हम भगरान की कनकटता
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पात हैं इस बात से कक हमन अपनी उदारता से ककतनों को जोड़ा है।
ककयातमक िम्व पूजा, सामकयक, आरािना, सािना है,
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जो कनकश्त समय में ककया जाता है। जबकक गुणातमक िम्व समता, ककयातमक िम्व नट-प्रककटस क समान है। नट-प्रककटस में हम
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प्रसननता, क्षमा, दया क भार हैं, जो कहीं भी ककसी भी समय और ककतन भी शतक बनाल अगर “अंकतम मैच” में रन नहीं बटोर तो
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ककसी भी पररकसथकतयों में ककए जा सकत हैं। कनि्वन असहायों की नट-प्रककटस अथहीन हो जाती है। ऐसे ही अगर ककयातमक िम्व की
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कन:सराथ सेरा करना प्रतयक िम्व में पुणय माना जाता है। हर वयकति का प्रकतककया या प्रकतछाया गुणातमक िम्व में नहीं आई तो ककयातमक िम्व
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कतवय है कक रह अपनी साम्थय क अनुसार असहाय लोगों की सेरा का कोई लाभ नहीं। गुणातमक िम्व एक चुनोती है कजसे हमें हर समय
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कर अपना नकतक िम्व कनभाय। ें िारण ककए रहना होता है और जब यह हमार सरभार में एकाकार
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हो जाता है तो करल हम पर ही नहीं, हमार चारों ओर कनरंतर अराि
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पूजा-पाठ, सामाकयक, आरती यह सब ककयातमक िम्व हैं।
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इनको करन क कलए एक कनकश्त समय, सथान एरं क ु छ प्रतीकों, रूप से अपनी आभा कबखेरता रहता है। हम कजतना इस में सफलता
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उपकरणों की आरशयकता होती है। जो हर समय सुलभ नहीं होत हैं। प्राति करत हैं उतना ही प्रभु क करीब तो होत ही हैं, सरयं अपन और
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इसकलए अकसर हम यह ककयाय नहीं कर पात। समय की कमी का समाज क कलए भी सुख का कारण बनत हैं।
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अगस्त , 2020 विद्या शोध पवरिकया 27