Page 19 - RISE_JUNE_2024
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लगता ह सभी को नक
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परदस म बनिया ह न दगी उिकी
पर आप खॎया जािो उिकी कहािी
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उिका दुख दद दख मि नलखि की ठािी
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घर स हजारों मील द ू र परदस म रहत ह ैं
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पररवार की खनशयों की खानतर ि जाि खॎया - खॎया सहत ह ैं
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कभी आध पट तो कभी भख ही सो जात ह
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पररजिों स बात करत तो सब अच्छा ह , यही कहत ह
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अपि वति की यादों क सहार यहा बदहाली म रहत ह
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हर नदि रोत ह और आस भी छपात ह ैं
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अरमाि उिक अपिों क कहीं, टट ि जाए
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इसी डर क साए म नकसी को कछ ि जतात ह
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कभी जो घर स आए मा का फ़ोि
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पोंछकर आस झूठी मस्काि चहर पर लात ह ैं
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मा बाब जी की उम्मीद और सपिों की खानतर
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रात - नदि बस काम ही काम करत ह ैं
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कभी जो अपि मा - बाप क राजा बट थ े
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परदस आकर अब मानलक का हुक्म बजात ह ै
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वह बचपि क दोस्त वह खत खनलहाि
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बहुत याद आत ह वापस उन्ह बलात ह ैं
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ध्रव नलख दद प्रवानसयों का पर खॎया - खॎया नलख पाएगा
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गाव का पीपल , दोस्तों की मस्ती कस उन्ह नदलाएगा
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मा क आचल की छाया, बाब जी का दुलार कहा स लाएगा
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भाई - बहि की प्यार भरी तकरार कस भी ि नदला पाएगा
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आओ लौट जाए अपि वति नदल खश हो जाएगा|
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ध्रव चौहाि की कलम स
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