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शिक्षक-प्रिागरण (स्वरचना)
→निनीत कु मार
स्नातकोत्तर शिक्षक(रहिंदी)
के वि.2, िायसु ने ा अकादमी
दंिु ीगल, हैदराबाद
तुम अगर नहीं चते े देि बढ़ न पायगे ा
िातत िगथ भाषा मंे देि बँट ये िाएगा
बात एकता की है व्यवक्त व्यवक्त अनुपम है
िातत िगथ भाषा से देि ही महत्तम है ॥
भोगिावदता की आग लालची बनाती है
हर िो चीि पाने को रोि ये सताती है
र्त्ागभािना पर आि मूखथता पहरा है
भारतीय संस्कृ तत पर घाि हुआ गहरा है
इन ज्वलन्त प्रश्नों का हल नहीं सरलतम है॥ िातत िग.थ ..
सौम्यता सरलता पर छल कपट की छाया है
बधं ुता के ररश्तों पर हािी ठगनी माया है
उंगशलयाँ बताती हंै फोन पर ही मले ा है
चार जमत्र बैठे हों तो भी िन अके ला है
िीिनीय िलै ी में क्यों हुआ व्यततक्रम है ॥ िातत िग.थ ..
िासना की निरों ने हर सतु ा को घरे ा है
ननष्कलकं चहे रों के पीछे तम घनेरा है
शससककयाँ बतातीं हंै कु छ न कु छ तो गदं ा है
मनिु भय विििता से लाि-सा ही जिदिं ा है
नागररक ससु ंस्कृ त हों तो सफल पररश्रम है ॥ िातत िग.थ ..
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