Page 29 - Epatrika2020 KV2 AFA DUNDIGAL HYD
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ह -वै वी
दसव - 'ब'
एक डोर म सबको को ह ब धती
वह हद ह,
हर भाषा क सागी बहन जो मानती
वह हद ह।
भरी-परू ी हो सभी बो लय
यह कामना हद ह,
गहरी हो पहचान आपसी
यह साधन हद ह,
सौत िवदशी रह न रानी
यह भावना हद ह।
त म, त व, दश िवदशी
सब रगं ो को अपनाती,
जैसे आप बोलना चाह
वह मधरु , वह म भाती ,
नए अथ क प धारती
हर दश क माट पर ,
'खाली - पीली - बोम - मारती '
बबं ई क चौपाट पर,
चौरगं ी से चली नवले ी
ी त- पयासी हद ह,
बहुत-बहुत तुम हमको लगती
‘भालो-बाशी’, हद ह।
उ वग क य अं ेज़ी
हद जन क बोली ह,
वग-भदे को ख़ करगे ी
हद वह हमजोली ह,
सागर म मलती धाराएँ
हद सबक सगं म ह,
श , नाद, ल प से भी आग े
एक भरोसा अनुपम ह,
गंगा कावेरी क धारा
साथ मलाती हद ह,
पूरब-प म/ कमल-पंखरु ी
सते ु बनाती हद ह।