Page 25 - Epatrika2020 KV2 AFA DUNDIGAL HYD
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कृ त क लीला ारी !! 

                                                      - करण कु मार पजं ा 
                                                                   दसव अ 

  कृ त क लीला ारी, 
कह बरसता पानी, बहती निदय , 
कह उफनता समं ह, 
तो कह श त सरोवर ह। 

  कृ त का प अनोखा कभी, 
कभी चलती साए-साए हवा, 
तो कभी मौन हो जाती, 

  कृ त क लीला ारी ह। 
कभी गगन नीला, लाल, पीला हो जाता ह, 
तो कभी काल-े सफद बादल से घर जाता ह, 

  कृ त क लीला ारी ह। 
कभी सूरज रोशनी से जग रोशन करता ह, 
तो कभी अं धयारी रात म च द तारे िटम िटमाते ह, 
 

  कृ त क लीला ारी ह। 
कभी सखु ी धरा धलू उड़ती ह, 
तो कभी ह रयाली क चादर ओढ़ लते ी ह, 

  कृ त क लीला ारी ह। 
कह सूरज एक कोने म छु पता ह, 
तो दूसरे कोने से नकलकर च का दता ह, 

  कृ त क लीला ारी ह । 
 
 

                                                       
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