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“बाबासाहब                       एक शब्द ज़जसम सारा जहा                 ँ
                                                  े
                                                                                             ें

                                                                                       ँ
                                        े
                                   अंबडकर - एक                              ‘मा’
                                         प्ररणा”
                                           े
                                                                माँ और माँ का प्यार तनराला
                                                                उसन ही है मुझ संभाला
                                                                             े
                                                                     े
                                                                मेरी मम्मी बड़ी प्यारी
               बाबा साहब अंबेडकर आप न जन्म तलया।
                      े
                                       े
                                                                मेरी मम्मी बड़ी तनराली
                  मठहलाओं, दतलतों का उद्धार ठकया ।
                                                                क्या मैं उनकी बात बताऊ
                                                                                    ँ
               मां- बाप  और तशक्षक का नाम रोशन ठकया ।           सोचूँ! उन्ह कसे मैं जान
                                                                         े
                                                                           ै
                                                                   ँ
              भीमा - माता, रामजी –बपता अंबेडकर-तशक्षक           पाऊ ?
                                                                                            े
                                                                                       े
                                                                               सुबह सवेर मुझ उिाती
              तमलाकर  डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर बना ।                           नंदू कहकर मुझ जगाती
                                                                                           े
                    अस्पृश्यता का कलंक तमटाकर,                                 जल्दी से तैयार मैं होती

                                                                                 े
                                                                                          ू
                   भारत क े लोगों को उचा कल ठदया ।                           उसक कारण स्कल जा पाती
                                   ँ
                                       ु
                                                                            स्कल से आते ही खुश हो जाती
                                                                              ू
                     छआछत क े समाज में अपन  े
                           ू
                       ु
                                                                            जब मम्मी का चहरा ठदखता I
                                                                                         े
                मनोबल से अच्छ कल का तनमााण ठकया ।
                                ु
                              े
                                                                            अब तो होती है वचुाअल क्लास
                      संबवधान का तनमााण ठकया,
                                                                              माँ रहती है सारा ठदन पास
               भारत - तनमााता, भारत रत्न अंबेडकर बना ।
                                                                             पौबिक भोजन मुझ ज़खलती
                                                                                             े
                       दतलतों का भगवान बना,
                                                                              नए-नए व्यंजन पकाती I

                      पूरा भारतवर्ा नतमस्तक है,
                                                                             मुझ पर गुस्सा जब है आता
                      आप को शत - शत नमन है,
                                                                              दो तमनट मे उड़ भी जाता
                                            ु
               भारतवर् का हर नागररक आपका शक्रगज़ार
                      ष
                                                ु
                                                                                मेरी मम्मी मेरी जान
           आपने ठदया हमें बवश्व का सबसे बड़ा लोकतांबिक
                                                                               रखती मेरा पूरा ध्यान
                        गणतांबिक उपहार |                                     ‘ माँ’ शब्द ठदखने में छोटा

                                                                              बसा है इसमें सारा जहाँ|


                              नंठदनी अतनल वायकर
                              आिवीं डी                                         नंठदता सुरश

                                                                                        े

                                                                                 आिवीं सी
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