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आग बढ़ता चल                                              काश !!
                     े



             चुप, चुप, चुप बोल मत हरदम                          अगर पेड़ भी चलते होते

                                                                              े
             काम कर ज़्यादा, बातें कर कम                        ठकतने मिे हमार होते
                                                                              े
                                                                  ँ
                                                                बाध तने में उसक रस्सी
             सुन,सुन,सुन, बात काम की सुन
                                                                चाह जहा कही  ले जाते
                                                                            ं
                                                                   े
                                                                        ँ
             छोड़ बनानी बात, लगा काम की धुन
                           ें
                                                                                 ँ
                                                                                     ं
                                                                              जहा कही  भी धूप सताती
             हस  कर बहा पसीना, एक सीख तू गुन
              ँ
                                                                              उसक नीचे झट सुस्ताते
                                                                                  े
             तूफानों से टकरा, कठिन काम ही चुन ||
                                                                                 ँ
                                                                                     ं
                                                                              जहा कही वर्ाा  हो जाती
             चल, चल, चल, आगे बढ़ता चल
                                                                              उसक नीचे हम तछप जाते
                                                                                  े
             नई उमंग लेकर, जैसे नठदया जल
                                                                लगती जरा भी भूख अचानक
             पीछ नजर न कर, आगे बढ़ प्रततपल
                े
                                                                तोड़ मधुर फल उसक खाते
                                                                                 े
                                  े
             आज नहीं तो कल ,तुझ तमले तेरी मंज़िल ||
                                                                आती कीचड़ बाढ़ कही तो
                                                                                  ं

                                                                झट उसक ऊपर चढ़ जाते।
                                                                        े

                                                                        अगर पेड़ भी चलते होते
                                  इवान्ना रोबबन
                                                                                     े
                                  आिवीं डी                              ठकतने मिे हमार होते
                                                                              इवान्ना रोबबन
                                                                                  आिवीं डी
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