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चलाऊ ता9क चेहर पर हnक> सी भी खर'च न “आपक> आग क> &या योजना ह ?”
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आन पाए और खून क> एक बूद तक न बह। शेव
“अभी मg क ु छ नह!ं जानता। पर मौज-म ती
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बनान क बाद जब चेहर पर हाथ फरा जाए तो
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करगे।”
एक बाल क> चुभन भी महसूस न हो। चेहर क>
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?वचा एकदम कोमल और %नखर! हई हो। वह 9फर पीछ झुका और उसन अपनी
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आंख बSद कर ल!ं। मेर हाथ म उ तरा था।
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हां ! मg गुyत dप स Pव\ोह! था परSतु
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एक अ?यंत कत Dय%नMठ नाई भी था िजस अपन मgन उसस पूछा,
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हनर पर गव था। मgन चेहर पर झाग पर कलम
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“&या आपक> सभी को सज़ा दन क> योजना ह?”
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क नीचे उ तरा रखा और अपन #सWह त हाथ' स
उ तर को नीचे क> ओर बढ़ान लगा। बाल Vयादा
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“सबको।” उसन कहा।
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स{त नह!ं थे ले9कन स{त थे। आ1ह ता-आ1ह ता
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साफ िजnद 1दखाई दन लगी। उ तर पर झाग म साबुन क> झाग उसक चेहर पर सूख रह!
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कट हए बाल शा#मल हो गए थे। मg उ तर पर थी। मुझे जnद! करनी पड़ी। शीशे म मgन गल! का
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लगी झाग को Zडhबी म डालन क #लए क ु छ दर `य दखा, सब क ु छ पहल क> तरह था। पंसार! क>
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kका। एक बार 9फर मgन परासी पर रखकर उ तर दुकान पर दो-तीन ाहक थे। तब मgन द!वार पर
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क> धार को तेज 9कया। मg जाना-माना नाई टगी घड़ी क> ओर दखा, दोपहर क दो बज कर
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इस#लए ह &य'9क मg अपना काम बहत मु तैद! स बीस #मनट हए थे। उ तरा नीचे क> तरफ बढ़ रहा
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करता ह। उसन अपनी आंख खोल!ं, कपड़े स था। स{त दाढ़! पर 9फरता उ तरा जानी-पहचानी
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अपना हाथ बाहर %नकाला और चेहर क उस भाग सरसराहट क> आवाज पैदा कर रहा था। उस
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पर हाथ फरा जो अब साफ हो चुका था। उसन कPवय' और पादKरय' क> तरह अपनी दाढ़! बढ़ा
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कहा, लेनी चा1हए थी। ऐसी दाढ़! उस पर खूब फबती।
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बहत सार लोग उस पहचान ह! न पाते। जो उसक
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“आज छ: बजे क ू ल म आना।”
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#लए बेहतर होता। मgन उसक> गदन को कपड़े स
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“&या कल जैसा ह! `य दखन को #मलेगा?” मgन अfछt तरह स ढक रखा था। गदन क पीछ उसक
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भयभीत होकर कहा। बढ़ हए बाल घुघराल थे। उ तर स छोटा सा पोर
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भी खुल जाता तो उसम स खून का मोती टपक
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“उसस बेहतर भी हो सकता ह।” उसन जवाब
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सकता था। मेर जैस %नपुण नाई अपन 9कसी भी
1दया।
ाहक को ऐसी असुरवद ि थ%त म नह!ं डाल
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मई – जुलाई 38 लोक ह ता र