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अfछाई क अहाते म7 वे सार! पु तक
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िजनम दज़ हg अfछाई क फलसफ
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बुराई क> जय पKरि थ%तय' पर, हालात' पर
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अfछाई अपना काय करती ह पथर!ल! राह
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अfछाई नह!ं चीख़ पाती
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चलती हई मौजूदा समय म +वेश करती ह
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आवाज़ उठाते ह!
मुँह पर रख द! गई हथेल!
एकदम तSहा
दूसर! तरफ 9करदार पर दाग
अकले या6ा म
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वाथ , लोलुपता,
अंध आंUधयां से जुझते हए
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भीगती हg उसक> शाख चापलूसी अंतः #लyयSतरण पर उतर आएंग
बस, स1दय' तक आवाज़ को दबाना था
प?ता प?ता गीला
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कहता ह 'अिनपथ '
अfछाई क ु छ भी नजरअंदाज नह!ं करती
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वातावरण म जब9क Pवरोधाभास ह
उसे िजंदा रहना था
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अपने 9करदार क साथ
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ट ू ट कर जब 5बखरती ह
यह! नह!ं समझ पाई बुराई
कौन दता ह सहारा
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भटकती ह दर दर
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अfछाई को #मलती हg
लार टपकाते भेZड़ए क जबड़े
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शक क घेर' म सबको समटते हए
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दह क पार
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अfछाई जैसे नगर %नगम क> नगरवधू
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तार तार करती %नगाह
हद थी कई कई
द!वार पर लटकती
मान#सकता क> क ुं ठाओं क>
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झूठ शhद' क> ~ृंखला
Pवक#सत स¼यताओं क>
+`न Uच¾न दागते हए
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बुराई अपना रग
शूSय क आभास म
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1दखाती ह
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दुखाती अपनी नस
न जाने 9कतने छल
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फरब से ठगती ह अfछाई को
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क ु रदती कई कई सवाल
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अfछाई समाज क आईने म
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अfछाई का दमघ'ट दती ह
%नव 6 थी एक
और ईमानदार! से
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अ`ल!ल-`ल!ल क बीच
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सा1ह?य क> जड़7 1हला दती ह
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महज िMट का फक
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1हलता ह आदमी
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9क अfछाई को समाज क आईने म
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और आदमी का वजूद
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और Pपछड़ना ह
मई – जुलाई 91 लोक ह ता र